‘महाराष्ट्र का मंच’ (संपादकीय, 4 जुलाई) पिछले चार सालों में महाराष्ट्र की राजनीति में उठापटक का वर्णन करने वाला था! बात स्पष्ट है कि जहां पर भाजपा शासन नहीं कर रही, जहां तक संभव हो, किसी दूसरी पार्टी के लिए भी शासन करना मुश्किल हो जाता है! पिछले विधानसभा चुनाव भाजपा और शिवसेना ने मिलकर महाराष्ट्र में लड़े, लेकिन मुख्यमंत्री के पद पर विवाद होने के कारण दोनों के रास्ते अलग हो गए।

शिवसेना, शरद पवार की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली लेकिन दो साल के अंदर ही शिवसेना में बगावत हुई उसी पार्टी के एकनाथ शिंदे को समर्थन देकर और अपनी पार्टी के फडणवीस को उपमुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने नई सरकार बना ली। अब शरद पवार की पार्टी के चालीस विधायक टूट गए और शरद पवार के भतीजे अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री बनाकर राजनीति में और गंदगी भर दी गई।

मतदाता जिन विधायकों को चुनते हैं, वही विधायक मतदाताओं की भावना को पैरों तले कुचल कर सत्ता प्राप्त करने के लिए दूसरी पार्टी के साथ मिल जाते हैं। ऐसे में ‘आया राम गयाराम’ को रोकना मुश्किल हो रहा है। भाजपा सरकारी पर दूसरी पार्टियों के विधायकों तथा सांसदों के खिलाफ अपराधिक मामलों को लेकर प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, सीबीआइ आदि का दुरुपयोग करके उनको जेल में डालने के आरोप लगते रहे हैं।

इसे भी विपक्ष के बड़े-बड़े दागी नेताओं के जेल से बचने के लिए भाजपा में शामिल होने का कारण माना जा रहा है। महाराष्ट्र में भी जो चालीस विधायक अजीत पवार की अगुआई में भाजपा सरकार में शामिल हुए हैं, उनमें से अधिकांश के खिलाफ ईडी ने मुकदमा दर्ज कर रखा है।

असल में दूसरी पार्टी के विधायकों को तोड़कर सरकार बनाने का सिलसिला राजनीति की निम्नतम सीमा है जो लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। महाराष्ट्र की कहानी राजस्थान और बिहार में भी दोहराई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार द्वारा ईडी, आयकर विभाग तथा सीबीआइ का अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ दुरुपयोग रोकने के लिए ध्यान रखना चाहिए। अन्यथा विपक्ष खत्म हो जाएगा। विपक्षहीन लोकतंत्र कैसा होगा, यह समझना मुश्किल नहीं है।
शाम लाल कौशल, रोहतक, हरियाणा।

भ्रष्टाचार की राह

हमारे देश में आज भी भ्रष्टाचार क्यों एक बहुत बड़ा मुद्दा बना हुआ है, जबकि इसे खत्म करने के दावे अक्सर किए जाते रहे हैं। सच यह है कि आज भी हमारा देश भ्रष्टाचार को कम नहीं कर पा रहा, जबकि दिन-प्रतिदिन यह विकराल रूप लेता जा रहा है। इसका एक बहुत बड़ा कारण हमारी देश की उस जनता के ज्यादातर हिस्से का किसी न किसी रूप में खुद भ्रष्ट होना है।

जो लोग हमारे देशहित के लिए जनसेवा के नाम पर सरकारी संस्थानों में किसी पद पर कार्यरत हैं और चंद पैसों और अपनी नौकरी में पदोन्नति के लिए अपना ईमान बेचकर काम करते रहते हैं। दुख की बात यह है कि हमारे आज के युवा, जिन्हें अभी जोश उमंग से भरा होना चाहिए और अपनी काबिलियत पर भरोसा होना चाहिए। वे भी इस गलाकाट प्रतियोगिता में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे।

अगर यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब शराफत से नौकरी करने वाले अधिक से अधिक लोग अवसाद ग्रस्त हो जाएंगे और हमारा देश और समाज भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाएगा। सवाल है कि आने वाली पीढ़ी को हम क्या दे रहे हैं? क्या इस तरह हमारा देश शिक्षित, समृद्ध और विकासित राष्ट्र बनेगा?
मधु गुप्ता, बलिया।

परिवार की बात

प्रधानमंत्री ने देश की तुलना एक परिवार से करते हुए कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि परिवार के एक सदस्य पर एक कानून लागू हो और दूसरे पर दूसरा कानून। लेकिन क्या सचमुच देश एक परिवार है? अगर ऐसा है तो यह भी पूछा जाना चाहिए कि एक ही परिवार के कुछ लोग पांच किलो राशन के लिए सरकारी इमदाद के भरोसे रहें और कुछ लोग खा-खाकर बदहजमी का शिकार कैसे हैं?

या फिर ऐसा कैसे है कि ‘परिवार’ के एक फीसद सदस्यों ने परिवार की चालीस फीसद संपत्ति पर कब्जा कर लिया है, जबकि पचास फीसद सदस्य केवल तीन फीसद संपत्ति के सहारे दिन काट रहे हैं? क्या किसी भी ‘परिवार’ में ऐसा हो सकता है कि कुछ बच्चों को तो शानदार महंगे निजी स्कूलों में पढ़ाया जाए और कुछ के नसीब में मध्याह्न भोजन के सहारे चलने वाले बिना शिक्षा और शिक्षक वाले स्कूल हों। जाहिर है, देश को ‘परिवार’ कहा जाता है तो उसके तकाजों को भी पहले पूरा किया जाना चाहिए। उसकी आड़ में अन्य कमियों को छिपाया नहीं जाना चाहिए।
हेमंत कुमार, भागलपुर, बिहार।

अमेरिका का रुख

क्या दक्षिण चीन सागर, ताइवान और जासूसी गुब्बारा वाले मतभेद का अंत हो गया है? हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग को तानाशाह तक कह डाला था। लेकिन अचानक अब दो बड़े अमेरिकी अधिकारियों ने चीन का दौरा तय किया है। पहले विदेश मंत्री अंटोनी ब्लिंकन ने यात्रा की। उसके बाद छह से लेकर नौ जुलाई तक के लिए ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन भी चीन के दौरे पर गर्इं। आखिर क्या ऐसा पिछले एक पखवाड़े में बदल गया, जिससे अमेरिकियों को चीन की याद सताने लगी है?

पिछले कुछ समय से अमेरिका भारत से संबंध मजबूत कर रहा है, ताकि चीन के साथ होने वाला आर्थिक नुकसान की भरपाई की जा सके। कई विदेशी व्यापारी और उद्योगपति चीन से पलायन कर रहे हैं, जिनमें अमेरकी भी शामिल हैं। चिंता का एक स्पष्ट क्षेत्र चीन का नया राष्ट्रीय सुरक्षा और जासूसी कानून शामिल है, जो एक जुलाई को लागू हुआ और विदेशी और अमेरिकी कंपनियों पर इसका संभावित विपरीत प्रभाव पड़ना शुरू भी हो चुका है।

इसके चलते कई विदेशी और अमेरिकियों को देश की सुरक्षा के नाम पर न सिर्फ गिरफ्तार किया गया, बल्कि उनके प्रतिष्ठानों की लगातार निगरानी की जा रही है। इतनी विषम और विपरीत परिस्थतियों के बावजूद वाइट हाउस को अगर लग रहा है कि चीन के साथ पहले जैसा व्यापार किया जाना चाहिए तो यह शायद उसकी एक महाभूल साबित होने जा रही है।
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर।