हिंदी को अन्य भाषाओं की अपेक्षा अधिक रूढ़िवादी माना जाता रहा है, खासकर जब तुलना अंग्रेजी से की जाए। कुछ विद्वानों का मानना है कि अगर हिंदी में भी अंग्रेजी की तरह अन्य भाषाओं से शब्द आसानी से समाहित कर लिए जाएं तो इसका भविष्य ज्यादा उज्ज्वल बनाया जा सकता है।

किसी भी भाषा का लचीलापन ही उसको अधिक स्थिर बनाता है, लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि नए शब्दों का सम्मिलन कुछ ऐसा होना चाहिए कि शब्दकोश की मौलिकता भी बनी रहे। अगर हम हिंदी की बात करें तो सबको पता है कि कितनी अधिक मात्रा में इसमें उर्दू और अरबी शब्दों को समाहित किया जा चुका है। यहां तक कि आज हम कई शब्दों में भेद ही नहीं कर पाते कि ये उर्दू के हैं या हिंदी के, मसलन ‘दोस्त’, ‘औरत’, ‘कमरा’, ‘खून’, ‘शर्म’, ‘जहर’, ‘हवा’, ‘बहादुर’, ‘यार’, ‘सिर्फ’ आदि।

भाषा में नए शब्दों का जुड़ाव तभी किया जाता है जब इसे इस्तेमाल करने वाले अधिकतर लोग उन शब्दों को सुविधापूर्वक इस्तेमाल करते हों। कुछ समय पहले अंग्रेजी के भी कुछ शब्दों को एक हिंदी शब्दकोश में जोड़ा गया। इंटरनेट के युग में यह भी एक अच्छी पहल मानी जा सकती है।

हिंदी के अथाह शब्द भंडार का दिन-प्रतिदिन विस्तारण एक आशाजनक सूचना ही है। हिंदी का विकास हम सबके विचारों की अभिव्यक्ति का एक नया माध्यम प्रदान करता है।
’अभिषेक त्रिपाठी, एनआइटी, जालंधर