‘हादसे की पट्टी’ (संपादकीय, 10 अगस्त) पढ़ा। पिछले दिनों केरल के कोझीकोड के एक छोटे से एक टेबलटॉप हवाई पट्टी पर एक बड़ा विमान हादसे का शिकार हो गया। यह हादसा तकनीकी कारणों से हुआ या मानवीय भूल से, अभी यह कहना कठिन है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार दुर्घटना के कारणों में यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि इस विमान ने अपने निर्दिष्ट जगह न उतर कर काफी आगे लैंड किया और बारिश के पानी से विमान के पहियों और हवाई पट्टी की जमीन में समुचित घर्षण बल न पैदा होने से या ब्रेक सही ढंग से न लगने से फिसल कर रनवे के आगे स्थित गहरी खाई में गिर कर दो भागों में टूट गया। शुक्र है कि विमान के इंजन को उसके होशियार पायलट ने उतरने से पहले ही बंद कर रखा था और हवाई अड्डे के ऊपर विमान को कुछ अतिरिक्त चक्कर लगा कर उसका ईंधन भी खत्म कर दिया था। अगर इस दुर्घटनाग्रस्त विमान में आग लग जाती तो संभव है कि सारे लोग मारे जाते।

कोझीकोड जैसे छोटे रनवे वाले मंगलुरु, शिमला, कुल्लू, सिक्किम के पाक्योंग और मिजोरम के लेंगपुई जैसे हवाई अड्डों पर विमान को उतारने में इसके पायलटों को बहुत ज्यादा सावधानी और एहतियात की जरूरत पड़ती है और यह सावधानी घनघोर बारिश और कम दृश्यता वाले मौसम में और बढ़ जाती है। एक अंतरराष्ट्रीय बड़ा विमान जब हवाई पट्टी पर उतरता है, तो उसकी कम से कम रफ्तार एक से डेढ़ सौ किलोमीटर प्रति घंटे तक होती है। वैसी विषम स्थिति में कोझीकोड जैसे छोटी हवाई पट्टी पर ब्रेक लगा कर भारी वजन के विमान को रोक लेना बहुत दुष्कर कार्य होता है।

इस हादसे पर भारत के नागरिक विमानन सचिव ने कहा कि अगर पहले दी गई चेतावनियों का समाधान किया गया होता, तो इस दुखद हादसे से बचा जा सकता था। सवाल यह है कि इस हवाई पट्टी की लंबाई, उसके आगे और आसपास के बफर जोन की लंबाई-चौड़ाई आदि बढ़ाने के सुझाव पर क्यों काम नहीं किया गया। अब इस हादसे की ईमानदारी और सत्यता से जांच होनी चाहिए और उसका निदान भी समय रहते किया जाना चाहिए।
’निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र