इसे मार्टियन क्रेटर भी कहते हैं। इस रोबोट या रोवर के ठीक नीचे डार्क ज्वालामुखी की चट्टानें हैं तो दूसरी तरफ खुरदुरी जमीन है, जिसमें ओलिविन खनिज से भरपूर चट्टानों की भरमार है। अब यह रोवर अपने लैंडिंग स्थल के आसपास अपने रोबोटिक हाथों, कंप्यूटर और कैमरे की आंखों से वहां उपस्थित छोटे चट्टानों, मिट्टी और खनिजों की गहन जांच-परख और उनका विश्लेषण करेगा। आसपास की जगहों की तस्वीर और वीडियो भेजना उसने शुरू भी कर दिया है।
यह एक आधुनिकतम रोवर है, जो अपनी एडवांस लैंडिंग तकनीक के सहारे सबसे पहले मंगलग्रह के लक्षित टच डाउन क्षेत्र में पहुंचा और आधे घंटे पहले अपने अस्सी हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार की तीव्र गति को कम करके इतना कम कर दिया कि मंगल की सतह को छूने से पहले इसकी गति लगभग शून्य हो गई और यह बिल्कुल सुरक्षित मंगल ग्रह की जमीन पर उतर गया।
पृथ्वी से अनंत दूरी पर ब्रह्मांड में स्थित ग्रहों और तारों पर भी जीवन है या नहीं, इसकी संभावना को मनुष्य प्राचीनकाल से ही खंगालता रहा है, लेकिन प्रकाश वर्षों में दूरी की विराटता की वजह से प्राचीन मानव केवल दूरबीनों के सहारे उसका अनुमान लगाने तक ही सीमित रहा। अब अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की मंगल में उत्सुकता इसलिए बढ़ी है कि अगर मंगल पर पानी रहा है, तो वहां पहले कभी जीवन भी जरूर पनपा होगा।
मंगल ग्रह पर जाने और उसे जानने-समझने के लिए अब तक पचास से अधिक अभियान चले हैं। समूचे ब्रह्मांड में अभी तक ज्ञात जीवन के स्पंदन से युक्त ग्रह हमारी पृथ्वी ही है, इसलिए वैज्ञानिकों को सूर्य सहित तमाम तारामंडलों के अध्ययन के लिए केवल ज्योतिष तक सीमित रहना मंजूर नहीं है। उनके मुताबिक, इस ब्रह्मांड में स्थित सभी ग्रहों, उपग्रहों, तारों, निहारिकाओं, ब्लैक होल आदि का अधिकतम और विशद गहन अध्ययन होना चाहिए। वैज्ञानिकों के अनुसार इस ब्रह्मांड के सभी ग्रहों, उपग्रहों, तारों यथा सूर्य, शनि, बृहस्पति आदि सभी में दिन-प्रतिदिन क्षय हो रहा है।
मंगल ग्रह पर अरबों साल पहले उस पर जलस्रोतों का होना दर्शित होता है, लेकिन वहां के संभाव्य जीवों सहित वहां के सभी जलस्रोतों का विलोपन एक रहस्य है। इस रहस्य से पर्दा उठना ही चाहिए। इस रहस्य से पर्दा उठाने में सफलता इस धरती पर स्थित किसी भी देश के वैज्ञानिकों को मिले, लेकिन उसका फायदा समूची मानव जाति को होगा।
’निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र
हाशिये की फिक्र
पिछले कई वर्षों से चाय बगान के मजदूरों की हालत दयनीय बनी हुई है। एक खबर के मुताबिक बगान में पच्चीस किलो चायपत्ती तोड़ने पर उन्हें मात्र दो सौ दो रुपए ही मजदूरी के मिलते हैं। गौरतलब है कि सिर्फ बंगाल में ही लगभग बारह लाख मजदूर इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। देश में वर्तमान में एक हजार चार सौ पचासी चाय बगान हैं, जिसमें से सिर्फ बंगाल में साढ़े चार सौ बगान हैं। अन्य चाय बगान असम और तमिलनाडु में हैं। इनमें काम करने वाले मजदूरों की स्थिति चाहे जितनी खराब हो, लेकिन बगान के मालिकों की कमाई करोड़ों में है।
बगान मालिकों को इसलिए भी फायदा होता है कि सरकार ने चाय के उत्पादन पर कोई अतिरिक्त कर नहीं लगा रखा है, क्योंकि चाय उत्पादन को भी कृषि पैदावार की तरह कृषि में शामिल किया गया है। इस समय बंगाल और असम में चुनाव होने वाले हैं। सरकारों को चाहिए कि चाय बगान के मजदूरों की हालत सुधारने और उनके हित सुनिश्चित करने के लिए कल्याणकारी घोषणा करे और उसे पूरा करे। केवल चुनावी वादों और घोषणाओं से कुछ नहीं होना है, जैसा अब तक होता आया है।
’स्वप्निल शर्मा, धार, मप्र