जम्मू-कश्मीर में (त्रिशंकु) चुनाव नतीजों के मद्देनजर सत्ता के समीकरण मुख्य रूप से पीडीपी, भाजपा और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच बिठाए जा रहे हैं हालांकि चुनाव-प्रचार के दौरान तीनों दलों ने एक-दूसरे पर खूब छींटाकशी की थी। देखना अब यह है कि अपने कहने-सुनने से पार्टियां पिंड कैसे छुड़ाती हैं? मुंह से बोले गए शब्द और कमान से निकले तीर क्या सचमुच वापस अपने स्थान पर आ जाएंगे?
इसमें शक नहीं है कि जम्मू-कश्मीर, खास तौर पर कश्मीर घाटी में पहली बार भाजपा ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। सीट भले ही उसे वादी में एक भी न मिली हो, मगर भाजपा का टिकट चाहने और चुनाव लड़ने वालों की संख्या कम नहीं थी। वादी में भाजपा का वोट प्रतिशत भी बढ़ा है। सवाल लक्ष्य पाने का भी नहीं है। सवाल है, वहां के मतदाता की मानसिकता में परिवर्तन होने या उसमें परिवर्तन लाने का। हुर्रियत की वोट-बहिष्कार अपील के बावजूद कड़ाके की सर्दी में मतदाता घर से निकला, बूथ के बाहर लंबी कतार में खड़ा रहा और जिसे मन किया वोट दिया।
संभवत: देश में हो रहे राजनीतिक बदलाव से प्रेरणा लेकर और कुछ अच्छे की उम्मीद लगा कर ही उसने वोट का प्रयोग किया है। अब देखना यह है कि उसकी उम्मीदें पूरी होती हैं या नहीं। जम्मू-कश्मीर में अब तक के सभी चुनावों में यह चुनाव हर दृष्टि से अभूतपूर्व रहा।
शिबन कृष्ण रैणा, अलवर
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