पहले लोकसभा चुनाव, उसके बाद महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की और अपनी सरकार बनाई। इन सभी चुनावों में जीत का श्रेय मोदीजी को दिया गया। शायद यहां भी उनका नसीब जोर मार गया और उन्हें श्रेय मिल गया! भाजपाई चश्मे के अलावा यदि वस्तुस्थिति को समझा-परखा जाए तो सच्चाई केवल मोदी की लोकप्रियता तक सीमित नहीं है बल्कि कांग्रेस के प्रति अलगाव इसका मुख्य कारण है। पिछले दस साल के कांग्रेसीकुशासन ने देश में ऐसा माहौल बना दिया कि लोग कांग्रेस से छुटकारा चाहते थे। गठबंधन सरकारों के क्रियाकलापों और तीसरे मोर्चे के पिछले तजुर्बे को देखते हुए लोगों ने तय कर लिया था कि इस बार कांग्रेस को हराना है।
कांग्रेस के बाद भाजपा उस समय अकेली पार्टी थी जो देशव्यापी चुनाव लड़ने की क्षमता रखती थी। जनता परिवर्तन का मन बना चुकी थी। इसी बीच भाजपा के निवर्तमान अध्यक्ष राजनाथ सिह ने मोदी का नाम उछाल कर एक बढ़त ले ली। मोदीजी के गुजरात में किए गए कार्यों का उन्हें लाभ मिला और लोगों को लगा कि लोकसभा में एक बार मोदीजी को मौका देना चाहिए। जनता को भी यह लगा कि आज इससे बेहतर विकल्प नहीं हो सकता। जहां तक भाजपा के अन्य नेताओं के चयन की बात है तो किसी की उम्र, किसी एक पर सहमति न बन पाना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अनुशंसा आदि कारणों के रहते पर फैसला नामुमकिन था। नतीजतन, मोदीजी को उम्मीदवार घोषित कर दिया गया।
एक प्रचारक के नाते मोदी को भाषण कला में पारंगत होने का लाभ मिला और उन्होंने लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाबी हासिल की। वे प्रधानमंत्री बन गए। यहीं से भाजपा और उसके आनुषंगिक संगठनों के साथ प्रचार माध्यम ने मोदीजी की दिशा बदल दी। कांग्रेस के अहंकार और कुशासन को मोदी की छवि के नीचे दबा दिया गया और कुछ चाटुकार पत्रकारों और मोदी के नाम पर रोटी कमाने वाले भक्तों ने उनका मसीहा का रूप प्रस्तुत कर दिया। आएदिन टीवी पर और अखबारों में महिमा मंडन होने लगा। मोदीजी तो जैसे हकीम लुकमान हैं, अंतर्यामी हैं, जो चाहे कर सकते हैं! उसके बाद जैसे-जैसे चुनाव आते गए, सभी प्रदेशों में कांग्रेस के खिलाफ जो गुस्सा था, मोदीजी ने उसे भुना लिया। प्रचार माध्यमों की असीम कृपा से कांग्रेस के खिलाफ वातावरण की वजह को दरकिनार करके मोदीजी की लोकप्रियता को ऐसी हवा दी जो अब मोदीजी के गले की फांस बन गई है। मोदीजी को भी गलतफहमी हो गई। यहीं से मोदीजी को लगने लगा कि अब तो बस ‘मैं ही हूं’ और खुल कर खेलने लगे। अपने भाषण से न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी मंत्रमुग्ध कियाा। अब भाषण की अपनी सीमा है! वह सीमा भी चुकती है। अब मोदीजी के भाषण का स्टॉक खत्म हो गया है। लोग रोज नया चाहते हैं। लोकप्रिय बने रहने के लिए उन्होंने अपना पहनावा बदल, पर वह काम नहीं आ रहा। अपनी पसंद की एक सब्जी को आप कितने दिन तक खा सकते हैं! जो चीज आपको आनंद देती है उसी की अति पर ऊब भी हो जाती है। अब मोदी के भाषण ऊब पैदा करने लगे हैं। पिछले आठ महीनों में जमीन पर कुछ रचनात्मक नहीं दिखाई देने की स्थिति में न केवल सामान्य लोगों का बल्कि भाजपा से जुड़े पढ़े-लिखे नौजवानों का भी मोहभंग होने लगा है।
यतेंद्र चौधरी, नई दिल्ली
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta