भारत की रेलगाड़ियों में सुरक्षा और सुविधाओं को विश्वस्तरीय बनाने के सरकारी दावे अक्सर हवाई ही साबित हुए हैं। हर बड़ी रेल दुर्घटना के बाद कुछ उसकी वजहें तलाशी जाती हैं, लेकिन समस्या के समाधान की दिशा में कोई प्रयास नहीं होता। अब रेलमंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु ने रेल बजट 2015-16 पेश करते हुए कहा कि चुनिंदा मार्गों पर जल्द ही रेल सुरक्षा चेतावनी प्रणाली और गाड़ियों की टक्कर से बचाव की प्रणाली लगाने की घोषणा की है। भारतीय रेलवे यात्रियों की सुरक्षा के लिए कितना फिक्रमंद है यह इसी से समझा जा सकता है कि रेल-सुरक्षा के लिए आइआइटी कानपुर की विकसित की गई तकनीकें अब तक अमल में नहीं लाई गई हैं। आइआइटी कानपुर ने ‘टेक्नोलॉजी मिशन फॉर रेलवे सेफ्टी’ के तहत बारह सफल परियोजनाएं रेल मंत्रालय को सौंपी हुई हैं जिनमें सिर्फ ग्रीन टॉयलेट और सिमरन को मंजूरी मिली हुई है। बाकी सारी परियोजनाएं प्रभुजी की कृपा पर हैं।

गैंगमैन सेफ्टी सिस्टम को आइआइटी के निदेशक संजय गोविंद धांडे ने तैयार किया है। इसमें गैंगमैन ऐसी प्रणाली से लैस रहेंगे कि उन्हें ट्रेन के दो किलोमीटर दूर रहते ही पता होगा कि वह कहां है। यह प्रस्ताव आरडीएसओ लखनऊ की फाइलों में कैद है। महज तीस लाख रुपए लागत वाली यह तकनीक पता नहीं किस बात के इंतजार में है। मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग के लिए ‘एलसी गेट डिवाइस’ फाइलों में बंद है। इससे ट्रेन आने के पहले अलार्म बजने लगता है जिससे गुजरने वाले लोग सचेत हो जाते हैं। ‘सेफ रन प्रोजेक्ट’ से ट्रेन में लगा सेंसर पहले से बता देगा कि रास्ता साफ है या नहीं। इसके अलावा ‘वायरलेस कोड डिस्प्ले सिस्टम’ से ट्रेन की पल-पल की जानकारी होती रहेगी। ‘डिरेलमेंट डिटेक्शन डिवाइस सिस्टम’ से दो किलोमीटर पहले ही चालक किसी भी गड़बड़ी को भांप सकता है। रेलवे इसका सफल परीक्षण भी कर चुका है।

रेल-अपराधों का भी एक बड़ा अभेद्य जाल हमारे देश में मौजूद है। केंद्रीय गृह मंत्रालय से जारी 2014 की नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में रेल-अपराध के मामले में मध्यप्रदेश के अब देश का तीसरा राज्य बनने का खुलासा किया गया है। रेल-अपराधों में महाराष्ट्र पहले और उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर बताया गया है। यात्रियों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार गवर्नमेंट रेलवे पुलिस (जीआरपी) की रिपोर्ट पर नजर दौड़ाएं तो रेल-अपराध से जुड़े कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने आएंगे।

महज दो साल में रेलवे पुलिस ने अपराध के 75,289 मामले दर्ज किए। इनमें सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में सामने आए। इस फेहरिस्त में मध्य प्रदेश भले ही तीसरे नंबर पर है। लेकिन पिछले तीन सालों में सबसे ज्यादा इसी राज्य में रेलवे अपराध का ग्राफ बढ़ा है। रेलवे में होने वाले अपराध में चोरी के मामलों ने 70.2 फीसद योगदान दिया है। बलात्कार के मामले भले एक फीसद से कम रहे, लेकिन 132 लड़कियों को जबरन उठाए जाने के मामले दर्ज किए गए।

ट्रेन में लूट-डकैती के मामले में महाराष्ट्र अव्वल है तो वहीं उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा अपहरण के मामले सामने आते हैं। महाराष्ट्र ट्रेनों में होने वाली बलात्कार की घटनाओं में भी अव्वल नंबर पर है। चोरी और जहरखुरानी जैसे अपराधों में भी लगातार बढ़त दर्ज होती गई है। आंकड़े बताते हैं कि 2014-15 में चोरी, डकैती, जहरखुरानी से लेकर दुष्कर्म की 305 घटनाएं घटी हैं। इनमें 232 घटनाएं ट्रेनों के अंदर की हैं, जबकि मंडल के स्टेशन परिसरों में अपराध के 129 मामले ही सामने आए हैं। साफ है कि अपराधी चलती ट्रेनों को निशाना अधिक बना रहे हैं और करोड़ों रुपए के सामान पर हाथ साफ कर रहे हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक यह तस्वीर उभर कर सामने आई है कि इलेक्ट्रॉनिक निरीक्षण तंत्र जैसे बैगेज स्कैनर्स और मेटल डिटेक्टर को कार्यान्वित करने की प्रक्रिया धीमी है और अंतरराष्ट्रीय स्तर की नहीं है। ज्यादातर ट्रेनें बिना सुरक्षा गार्ड के चलती हैं और कई मामलों में इनके पास कोई हथियार नहीं होते हैं। पिछले पांच वर्षों में यात्रियों के खिलाफ आपराधिक घटनाओं में पंद्रह प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अब प्रश्न यह है कि क्या प्रभुजी असुरक्षा के इन आंकड़ों पर ध्यान देंगे और यात्रियों की यात्रा सुरक्षित बना पाएंगे?
शैलेंद्र चौहान, प्रतापनगर, जयपुर

 

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta