पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार बनने के बाद दोनों पड़ोसी मुल्कों भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्तों में कई बार उतार-चढ़ाव देखने को मिल चुके हैं। मगर इस बार हालात थोड़े बदले-बदले से नज़र आ रहे हैं। पहले जब भारत ने कहा था कि ‘पाकिस्तान अपना एक कदम आगे बढ़ाए तो हम दो कदम आगे बढ़ाएंगे’। मगर अफसोस पाकिस्तान की ओर से कभी भी ऐसी कोशिश नहीं की गई। मगर इस बार जब पाकिस्तान में करतारपुर साहिब गलियारा की आधारशिला रखी जा रही थी तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने यह बात पलट कर कहा कि अगर भारत एक कदम बढ़ाता है तो पाकिस्तान दो कदम आगे बढ़ाएगा। मगर हमारे देश की सरकार ने दो टूक में यह बात कही है कि पाकिस्तान के साथ सबसे पहली बात आतंकवाद पर ही होगी, उसके बाद ही किसी और मुद्दे को सामने लाया जाएगा जो कि पूरे तरीके से सही है।
भारत सरकार यह समझ चुकी है कि पाकिस्तान पर पूरे तरीके से भरोसा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वहां के हुक्मरान की सत्ता के असल ताले की चाभी हमेशा सेना के पास ही रहती है जो कभी नहीं चाहती है कि दोनों देशों के रिश्ते सुधरें। जिस तरह बीते कुछ दिनों से जम्मू-कश्मीर में घुसपैठिए और पाक के आतंकी मुठभेड़ों को अंजाम दे रहे हैं उससे साफ है कि भारत फिलहाल पाकिस्तान के साथ किसी प्रकार के संबंध बनाने की इच्छा नहीं रखता। इमरान खान को यह समझना पड़ेगा कि पहले वह अपने घर की गंदगी पूरी तरीके से साफ करें, तभी भारत के सामने दोस्ती के लिए हाथ आगे बढ़ाऐं। पाकिस्तान की सरकार यह उम्मीद कैसे कर सकती है कि भारत उनके साथ रिश्ते सही बनाना चाहेगी, जबकि 26/11 के आतंकवादी हमले का सरगना हाफिज सईद आज भी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहा है।
पीयूष कुमार, दिल्ली</strong>
सियासी नाकामी: पिछले दिनों करतारपुर साहिब कॉरिडोर के इर्दगिर्द राजनीति की चलती आंधी जाने-अनजाने कितने सवाल खड़े कर गई। लगे हाथ हमने सार्क बैठक के लिए पाकिस्तानी मेहमानवाजी को भी ठुकरा कर अपनी मंशा जता दी। शिकायत तो बस इतनी-सी है कि सीमाओं पर खून-खराबे के बीच कोई वार्ता नहीं हो सकती। मगर सवाल ये खड़ा होता है कि खामोश रह कर शिकायतें दूर कैसे होंगी? कॉरिडोर क्या इस बात कि गारंटी देता है कि हमारे सिपाहियों के खून नहीं बहेंगे?
बेशक नहीं! मगर इशारों-इशारों में मोहब्बत के रास्ते खुल गए। कॉरिडोर के बहाने पाकिस्तान ने अपने फायदे गिनाए, हमारे हिस्से में क्या आया? जमीन से आसमान तक निगहबानी के आधुनिक हथियारों से लैस दुनिया की जानी-मानी फौज हमारे पास है। देश तो जानना चाहेगा कि दुनिया हमारे साथ खड़ी है, सर्जिकल स्ट्राइक हमने किए, फिर भी दहशतगर्द घुस आए तो दोषी पाकिस्तान क्यों? बातचीत के किसी मौके को नकारना हमारी सियासी नाकामी तो नहीं?
एमके मिश्रा, रांची
सूचना का प्रचार: डिजिटल भारत में भारत सरकार एक कदम बढ़ी है। मोबाइल को तवोज्जो देते हुए केंद्रीय परिवहन राजमार्ग मंत्रालय ने कहा है कि यदि गाड़ी के कागज पूरे हैं और आपके फोन में उसकी फोटो या फोटोकॉपी है तो आपका चालान नहीं होगा। मंत्रालय ने इस सूचना को तुरंत प्रभावी होने का आदेश दिया है। मगर समस्या इस बात की है कि ये खबर आम लोगों तक कैसे पहुंचे?
आम जनता तक पहुंचाने के लिए इस खबर को मीडिया में प्रचारित कराया जाना चाहिए ताकि इसका लाभ सभी लोग उठा सकें। साथ ही सभी यातायात सुरक्षाकर्मियों को इस सूचना के बारे में मालूम होना चाहिए। ऐसा न हो कि इस सूचना से सुरक्षाकर्मी परिचित हैं, मगर ड्राइवर को नहीं मालूम तो उन्हें हर मोड़ पर सभी ड्राइवर को चालान करते समय इस खबर की जानकारी देनी होगी, तभी इस सूचना का प्रयोग सही से हो पाएगा।
कशिश वर्मा, नोएडा
धर्म की राजनीति: धर्म और राजनीति लोक कल्याण के लिए एक गाड़ी के दो पहिये हैं। दोनों का मकसद इंसानियत की राह पर चल कर लोक कल्याण होना चाहिए, न कि वैर विरोध या नफरत। लेकिन अफसोसजनक तो यह है कि धर्म का दुरुपयोग आज से नहीं, बल्कि राजा-महाराजाओं समय से सत्ता हासिल करने के लिए किया जाता आ रहा है। आज दुनिया भर में धर्म के नाम पर जो नफरत और हिंसा फैली है, उन्हें शायद धर्म का असली मतलव पता नहीं है। भारत में भी आज धर्म पर ओछी राजनीति करके अपना वोट बैंक बढ़ाने वालों की कमी नहीं है। हमारे देश की राजनीति में तो अब धर्म, संप्रदाय या जाति की भावनाओं को छेड़ कर उस पर राजनीति की रोटियां सेकने की गलत परंपरा चल पड़ी है। यह देश की एकता के लिए गंभीर खतरा है।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर
नोटबंदी की मार: दो साल पहले नोटबंदी कर सरकार ने इसे क्रांतिकारी कदम बताया था। तब कहा गया था कि इससे भ्रष्टाचारियों,आतंवादियों और जमाखोरों पर लगाम लगेगी। लेकिन बाद के दिनों में भ्रष्टाचारियों, जमाखोरों और आतंकवादियों पर कितना शिकंजा कस पाया, यह आज सामने है। उसके बाद देश में बड़े आतंकी हमले होते रहे, सीमापार आतंकवाद जारी रहा। आम जनता, छोटे व्यापारियों और छोटे उद्योगों को होने वाली परेशानियां भी खत्म नहीं हो पाई हैं। लोगों के कारोबार तक बंद हो गए। देश के करोड़ों असंगठित और दिहाड़ी मजदूर बेरोजगार होकर अपने घरों को लौट गए। नकदी के अभाव में किसानों को खत्म कर डाला। पिछले दिनों रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर ने कहा कि नोटबंदी से देश की आर्थिक प्रगति को जबर्दस्त धक्का लगा है। हाल में मौजूदा सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रह्मण्यम ने नोटबंदी को एक क्रूरतम, बेरहम कदम बताया है। ऐसे में नोटबंदी का क्या फायदा हुआ?
निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद
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