आम आदमी पार्टी ने शासक के बजाय सच्चा सेवक बन कर राष्ट्र सेवा की बात कही थी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का भरोसा जगाया था। मगर उनचास दिनों के शासन में अरविंद केजरीवाल के मकान का मामला बराबर चर्चा में रहा। कभी छोटा तो कभी बड़ा मकान। माना कि उनचास दिनों के शासन में बिजली, पानी और जनलोकपाल पर सरकार के कदम बिलकुल सही थे, मगर क्या यह उपयुक्त शासन-व्यवस्था टिक पाई? शुरू में इस टोपी और पार्टी का सम्मान सभी करते थे। मगर इसके लोकतांत्रिक सिद्धांतों और विचारधारा से दूर हटने और दूसरों की महज आलोचना से लोग इसे छोड़ कर जाने लगे और पार्टी सिर्फ अरविंद केजरीवाल तक सिमट कर रह गई।
अण्णा आंदोलन की जागृति से जनता में भारी जोश था, जिसका बड़ा लाभ भाजपा ले गई। अब मोदी की नई भाजपा की तरह इस पार्टी को भी नए सिरे से अण्णा की शरण और सान्निध्य से सुधर-संवर कर पारदर्शिता से नए कार्यक्रम और सामूहिक नेतृत्व, सहयोग, त्याग-तपस्या और सादगी के रास्ते लोकतांत्रिक बनना पड़ेगा, तभी यह शक्तिशाली बन कर कुछ कर सकती है।

वेद मामूरपुर, नरेला, दिल्ली

 

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