राजनेताओं को उनकी वैचारिक संपदा, चरित्र और उनके सामाजिक योगदान के लिए याद करने का चलन रहा है। गांधीजी को सत्य-अहिंसा के पुजारी, साधनों की पवित्रता के हिमायत, सादगी आदि के लिए दुनिया जानती है और बहुत समय तक जानती रहेगी। यदि मोदीजी ने प्रधानमंत्री के रूप में सचिन तेंदुलकर की तरह लंबी पारी खेली तो हो सकता है भविष्य में गांधीजी की पहचान यह हो जाए कि ‘अच्छा वे गांधीजी जिन्हें ‘महान राष्टभक्त’ नाथूराम गोडसे ने परलोक पहुंचाया था।’ इसी तरह लाला लाजपत राय के लिए कहा जाए कि ‘वही, जिन्हें किरण बेदी ने भारतीय जनता पार्टी का अंगवस्त्रम पहना कर राष्टीय पहचान दिलाई।’

बात नेताओं की पहचान की हो तो अक्सर होता यह है कि वे अपने विचारों, प्र्रतिबद्धताओं और दृष्टि के अनुसार समाज के लिए निस्वार्थ भाव से अपना कर्तव्य करते रहे बाद में उन्हें लोगों ने महान माना। उनके योगदान के मुताबिक उनकी पहचान बनी।

यह तो हो गई बात पुरानी जब प्रसिद्धि धीरे-धीरे फैलती थी। आज ‘फास्ट फूड’ और ‘ट्वंटी-ट्वंटी’ का जमाना है, इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों का युग है। इसलिए प्रचार-प्रसार की गति में भी पर लग गए हैं जिसका भरपूर ही नहीं, जरूरत से ज्यादा सदुपयोग जेट गति से यदि किसी ने किया है तो वर्तमान प्रधानमंत्री ने। जिस आक्रामकता, भौंडेपन और ओछेतरीकों से वे अपना प्रचार कर और करा रहे हैं उसके लिए निंदनीय शब्द कितना अपर्याप्त है यह पहली बार पता चला। सद्प्रयासों से नहीं अवांछनीय प्रयासों से प्रसिद्धि पाने का कोई विश्व रिकार्ड होगा तो निश्चित ही वह नरेंद्र मोदी के ही नाम हो सकता है।

श्याम बोहरे, बावड़ियाकलां, भोपाल

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