जनतंत्र में सबसे अहम सुविधा यह होती है कि जब सरकार की गलत नीतियों से लोगों का भरोसा खत्म होने लगे, उन्हें तकलीफ होने लगे तो जनता दूसरे राजनीतिक दल को जनादेश देकर सत्तारूढ़ दल को सत्ता से बाहर कर देती है। नई सरकार जनता की तकलीफों को दूर करने और पिछली सरकार से बेहतर करने का वादा कर सत्ता में आती है। परेशान करने वाली सरकार की विदाई और नई सरकार के आगमन पर जनता खुश होती है।
आने वाली सरकार भी जनता की खुशियों को हवा में गेंद की तरह उछालती रहती है। कुशल खिलाड़ी की तरह सरकार जनता की खुशी को हवा में ही बनाए रखने के जतन करती रहती है। खुशी की खुमारी उतरते ही जनता आभासी खुशियों को अपने करीब जमीन पर देखना चाहती है। वह कागद की लेखी को आंखन देखी में तब्दील होते देखना चाहती है, कथनी और करनी को एक होते देखना चाहती है। जनता अपनी सरकार को सभ्य, शालीन, भरोसेमंद और जनतांत्रिक व्यवहार करते भी देखना चाहती है जिससे वह उसकी इज्जत कर सके।
नरेंद्र मोदी सरकार कहती है सबका साथ सबका विकास। बात अपने अन्नदाता किसान से शुरू करते हैं। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश आ गया, जिससे किसान की मर्जी के बगैर उसकी जमीन सरकार अधिग्रहीत कर उद्योगपतियों को दे सकती है। यह किसका साथ और किसका विकास करने के लिए है? कितना जनतांत्रिक है सरकार का यह कदम? इस कदम से किसान सुरक्षित महसूस करेगा या असुरक्षित? अगर किसान असुरक्षित महसूस करेगा तो वह खाद्यान्न आत्मनिर्भरता और खाद्यान्न सुरक्षा में कितना योगदान कर सकेगा? जब सरकार सबके साथ की बात करती है तो मतलब होता है कि अमीर-गरीब सभी का साथ।
अमीरों के साथ सरकार है यह तो स्पष्ट दिख रहा है, उनके फायदे के लिए संसद को ताक पर रख कर कानून बना रही है, अमीरों को पात्रता न होते हुए भी हजारों-करोड़ रुपयों के कर्ज आनन-फानन मिल रहे हैं, और मिल रही हैं सरकारी सुविधाएं। दुनिया भर के अमीरों को न्योता दिया जा रहा है कि आइए और आपको जो चाहिए सरकार देगी, यह सरकार अपनी ही समझो। चारों तरफ अमीरों की हो रही है बल्ले-बल्ले। क्या ऐसी दिलदारी गरीब के लिए दिखाई है सबका साथ वाली सरकार ने?
सबका साथ का एक मतलब यह भी होता है कि सरकार सभी धर्मों और जातियों के साथ है, कहीं कोई भेद नहीं कर रही। क्या ऐसा हो रहा है? हिंदुत्ववादी संगठन कह रहे हैं कि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाएंगे, यहां केवल हिंदू ही रहेंगे, जो हिंदू नहीं हैं उनकी ‘घर वापसी’ करा कर उन्हें हिंदू बना दिया जाएगा! जो मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, पारसी, सिख, आदिवासी आदि गैर-हिंदू हिंदू नहीं होना चाहेंगे और हम सरीखे, जो कोई धर्म और जाति नहीं मानते, यह सरकार उनकी होगी कि नहीं? भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद का प्रावधान है जिसका मतलब यह भी है कि सबका विकास सबका साथ, पर यह सरकार तो स्पष्ट संदेश विज्ञापित करके समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को विलोपित कर रही है। इस सबके बावजूद भी अगर सरकार कह रही है कि सबका साथ सबका विकास तो क्या हम मान लें?
बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार! दूध, फल, सब्जी, अनाज, कपड़े, जूते-चप्पल, मकान बनाने की सामग्री, किसानी के काम की सामग्री, जीवन रक्षक दवाइयां, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, रेल किराया सरीखी जीवन की न्यूनतम बुनियादी जरूरतों में कहां और कितनी महंगाई की मार कम हो गई? पेट्रोल के अंतरराष्ट्रीय दाम एक सौ छियासठ रुपए प्रति बैरल से गिर कर चालीस रुपए प्रति बैरल पर आ गए, यानी पचीस प्रतिशत पर आ गए। क्या इसी अनुपात में महंगाई की मार से बचाने का वादा करके सत्ता में आने वाली सरकार को दाम कम नहीं करने थे? कम तो हुए, पर केवल इतने ही क्यों?
श्याम बोहरे, भोपाल
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