केंद्र में स्पष्ट जनादेश के बाद संघ और उनके अनुषंगी संगठन के साथ-साथ कुछ सांसदों और मंत्रियों ने जिस तरह ‘घर वापसी’, गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने, देश को हिंदू राष्ट्र बनाने, ‘लव जिहाद’, समर्थकों के लिए ‘रामजादे’ और विरोधियों के लिए गाली की शब्दावली से अनावश्यक उत्तेजना, भय, नफरत, अलगाव और आतंक फैलाने की कोशिश की है, उसने छोटे-छोटे स्थानों पर औसत कार्यकर्ताओं के दुस्साहस को बढ़ावा दिया है।
इसका उदाहरण हाल ही में इंदौर की एक घटना है। सर्वधर्म समभाव रखते हुए सद्भावना प्रतिष्ठान इंदौर में विगत कई वर्षों से सभी धर्मों के त्योहार मनाता आ रहा है। दशहरा, दिवाली, ईद, क्रिसमस, गुरु नानक जयंती आदि त्योहार विभिन्न धर्म स्थलों और सार्वजनिक स्थलों पर मनाए जाते हैं, जिसमें सभी धर्मों के लोग शिरकत करते है। इसी क्रम में इस बार गीता भवन, इंदौर में अट्ठाई दिसंबर को क्रिसमस मनाने के लिए सद्भावना प्रतिष्ठान के तत्त्वाधान में कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के दौरान बजरंग दल के कुछ लोग पंहुचे और आयोजन को लेकर विवाद की स्थिति बनाने की कोशिश की गई और धर्मांतरण कराने का आरोप लगाते हुए कई लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। बाद में यही साबित हुआ कि धर्मांतरण के प्रयास के आरोप निराधार और मनगढ़ंत थे।
क्या इस तरह की घटनाओं से देश में शांति और स्थिरता के लिए संकट खड़े नहीं होंगे? क्या बगैर शांति और स्थिरता के सबका साथ, सबका विकास के स्वप्न को मूर्त रूप दिया जा सकेगा? क्या सद्भाव के प्रयासों को डराने-धमकाने और दबाने के खिलाफ आवाज नहीं उठना चाहिए?
सुरेश उपाध्याय, गीतानगर, इंदौर
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