बीते वर्ष चौदह फरवरी को केजरीवाल का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा और अब चौदह फरवरी को ही केजरीवाल का शपथ समारोह किसी फिल्म के क्लाईमैक्स से कम नहीं लग रहा है। आज लोकतंत्र की शक्ति का अहसास हर दिल्लीवासी कर रहा है। दिल्ली दरअसल लघु भारत है जहां देश के सभी भागों के और विभिन्न वर्गों के लोग रहते हैं। सत्तर में से सड़सठ सीटों पर ‘आप’ की शानदार जीत से साफ जाहिर है कि दिल्ली की जनता को एक ऐसा विकल्प चाहिए था जो नया तो हो ही, विश्वसनीय भी हो। आजादी के करीब छियासठ साल बाद भी देश की राजधानी जैसी जगह पर बुनियादी सुविधाओं से जनता वंचित है। ऐसे में विकल्प के लिए गुंजाइश तो है ही।

आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव में ऐसी अभूतपूर्व जीत हासिल की है, जिससे दिल्ली की जनता के प्रति जिम्मेदारी भी बढ़ गई है। वहीं भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी सहित पार्टी की हार के कई मायने हैं। अब जनादेश के मायने क्या हैं इसके विश्लेषण के लिए अनेक तथ्यों और संदर्भों को देखना-परखना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के पुरजोर प्रयास के बावजूद दिल्ली के स्थानीय मुद्दों को लेकर अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की सक्रियता और गरीब, निम्न-मध्य वर्ग, मध्य वर्ग में अच्छी पकड़ के कारण आप की शानदार विजय हुई। बीते वर्ष लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सात में से सात सीटें फतह करने वाली भाजपा की विधानसभा चुनाव में हार के क्या कारण हैं इसके पीछे अनेक वजहें हो सकती हैं। क्या मुख्यधारा की राजनीति से अलग जनता भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी के ‘विजन’ को ज्यादा विश्वसनीय मानती है?

खैर, आप की जीत और भाजपा की हार के चाहे जो मायने तलाशे जाएं दरअसल यह जनता की जीत है। जनतंत्र की जीत है। जनजिजीविषा की जीत है। पांच साल के लिए केजरीवाल अब निश्चिंत हो चुके हैं। उन्हें केंद्र के साथ मिल कर पुरानी गलतियों को न दोहराते हुए दिल्ली का सर्वांगीण विकास करना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी केजरीवाल को बधाई देते हुए दिल्ली के सर्वांगीण विकास का आश्वासन दिया है। उम्मीद है जनता के सपने पूरे होंगे।

अमित कुमार, हाजीपुरा, एटा

 

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