आखिरकार भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने टैस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया। जो गत उनकी बल्लेबाजी और कप्तानी की विदेशी धरती पर पिछले दिनों से हो रही थी उसे देख यह पहले ही हो जाना चाहिए था! एशिया के पाटे पिचों पर रन बरसाने वाले धोनी तेज और उछाल भरी पिचों पर कभी टिके ही नहीं। आंकड़ों के अनुसार उनका टैस्ट औसत आस्ट्रेलिया में उन्नीस, इंग्लैंड में सैंतीस, दक्षिण अफ्रीका में अट््ठाईस और वेस्ट इंडीज में बाईस है। वे मात्र एक बार किसी शृंखला में ढाई सौ से अधिक रन बना पाए। शतक बनाना तो दूर, वे अच्छी अर्धशतकीय पारियां भी गिनी-चुनी ही खेल पाए। ये आंकड़े विदेशों में उनकी बल्लेबाजी क्षमता की असली कहानी बताते हैं। इन आंकड़ों के साथ उनकी जगह कोई और खिलाड़ी होता तो कब का उसे बाहर का रास्ता दिखाया गया होता!

गौरतलब है कि गांगुली की कप्तानी में भारत ने आस्ट्रेलिया में शृंखला ड्रॉ कराई। यही कुंबले की कप्तानी में भी हुआ, अगर खराब अंपायरिंग के लिए कुख्यात सिडनी टैस्ट को अपवाद माने। द्रविड़ की कप्तानी में तो भारत इंग्लैंड में शृंखला भी जीती। ऐसे कारनामे करने में धोनी विफल रहे। उनकी कप्तानी में भारत टैस्ट में नंबर एक बना जरूर, पर उसमें बतौर बल्लेबाज धोनी का योगदान नगण्य था। जबकि उनके पहले के कप्तानों ने विदेशों में अच्छा प्रदर्शन किया। धोनी को सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और लक्ष्मण जैसे महान बल्लेबाज मिले, जिन्होंने विदेशी पिचों पर भी शानदार बल्लेबाजी की। धोनी की कप्तानी में ही भारत विदेशों में इतना हारा जितना कभी नहीं हारा। आस्ट्रेलिया में मौजूदा शृंखला के बीच में ही संन्यास लेकर वे टीम को मझधार में छोड़ कर चल दिए। वे शृंखला के बाद भी जा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

कुछ साल पहले नवजोत सिंह सिद्धू ने भी यही किया तो उनकी जम कर भर्त्सना की गई, जबकि न तो वे कप्तान थे और धोनी की तुलना में कहीं बेहतर बल्लेबाज भी रहे। नई और अनुभवहीन टीम को बीच में ही छोड़ना धोनी की मानसिक कमजोरी का परिचायक है! या फिर कहीं उन्हें यह डर था कि कहीं चौथा मैच टीम न हार जाए और वे हार के साथ विदाई नहीं चाहते थे, लिहाजा मैच ड्रॉ खेल कर जाया जाए।

आइपीएल में भी उन पर मैच फिक्सिंग की आंच पहुंचने का डर हो सकता है! उनकी गैर-मौजूदगी में कोहली को कप्तान बनाया गया है, जो खुद कमाल के बल्लेबाज हैं। धोनी के चलते द्रविड़ और लक्ष्मण को मजबूरन संन्यास लेना पड़ा। साथ ही धोनी से कहीं बेहतर सहवाग, युवराज, गंभीर और हरभजन को भी असमय ही बाहर होना पड़ा। इन सभी पर धोनी ने चेन्नई सुपर किंग्ज के रैना, जडेजा और अश्विन को तरजीह दी, जो आइपीएल तमाशे और पाटे पिचों के तो हीरो हैं। लेकिन विदेशी पिचों पर धोनी की तरह ही नाकाम हैं। एक अच्छा कप्तान वह होता है, जो खुद अच्छा प्रदर्शन कर पूरी टीम के सामने उदाहरण प्रस्तुत कर उन्हें प्रोत्साहित करे। इस मोर्चे पर धोनी निराश करते रहे। उनके प्रशंसक उन्हें किस दृष्टि से महान खिलाड़ी समझते हैं यह वे ही जाने। बहरहाल, देर से ही सही, पर धोनी ने संन्यास लेकर उचित कदम उठाया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि विराट कोहली की कप्तानी में भारत बेहतर प्रदर्शन करेगा।
कपिल सिद्धार्थ, तलवंडी, कोटा

 

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