एफएम पर इन दिनों दिल्ली विधानसभा चुनाव से संबंधित अपनी पार्टी के एक विज्ञापन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं, ‘‘जो देश का मूड है वही दिल्ली का मूड है, जो देश चाहता है वही दिल्ली चाहता है।’’

जिसके मंत्री संस्कृत में शपथ ग्रहण करते हों उस मंत्रिमंडल के मुखिया का शुद्ध हिंदी तो दूर, व्याकरण के बुनियादी ज्ञान से अवगत न होना बड़े अफसोस की बात है। जमीन का कोई भी टुकड़ा, चाहे वह विश्व हो, राष्ट्र हो, राज्य हो, जिला हो, तहसील हो, गांव हो, पुल्लिंग नहीं बल्कि स्त्रीलिंग ही रहेगा। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ‘भारत माता’ का जाप करने वाले लोग दिल्ली के लिए ‘‘…दिल्ली चाहता है’’ का प्रयोग करेंगे। क्या चुनावी गर्मी में भारत माता का रूपांतरण अचानक ‘भारत पिता’ के रूप में हो गया?

नैयर इमाम, रायपुर

 

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