लाख छुपाओ छुप न सकेगा राज ये इतना गहरा, दिल की बात बता देता है असली नकली चेहरा। ‘असली नकली’ फिल्म का यह गाना मानो आज के राजनेताओं के लिए ही लिखा गया है। नेता जो कहते हैं उसका मतलब उससे सर्वथा अलग ही होता है। नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व में राज्य प्रायोजित कत्लेआम ने गुजरात को एक सभ्य और धर्मनिरपेक्ष राज्य से कबीलाई हिंदू प्रदेश की ओर धकेल दिया। मोदी की इसी ‘सफलता’ पर फिदा होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से येन-केन प्रकारेण उन्हें दिल्ली पहुंचा ही दिया। मोदी के दिल्ली पहुंचते ही संघ परिवार और उसके आनुषंगिक संगठन पूरी निर्लज्जता के साथ धर्मनिरपेक्ष देश में सांप्रदायिक अलगाव के बीज सरेआम बोने लगे। प्रधानमंत्री ने इस मामले में मौन साध कर जो संदेश देना था, देकर अलगाववाद की खेती को सींचा।
चुनाव से पहले सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ कर बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक धु्रवीकरण करना भाजपा का पुराना हथकंडा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले त्रिलोकपुरी, बवाना में दंगे करवाना, चर्चों पर हमला करवाना इनकी चुनावी गतिविधियों में से एक था। इनमें मोदी की प्रत्यक्ष भूमिका भले ही न दिखती हो पर इससे हो रही भाजपा की बदनामी से बचाव में प्रधानमंत्री पद का पूरा-पूरा उपयोग किया। याद कीजिए, चर्चों पर हमले को केंद्र सरकार के अधीन पुलिस ने पहले तो चोरी की घटनाएं बताते हुए मामले दर्ज करके सांप्रदायिक हिंसा को नजरअंदाज करने की कोशिश की।
चुनाव निपटते ही मोदी ने दिल्ली पुलिस प्रमुख को बुला कर क्लास ली। इसके दो-तीन दिन बाद ही पुलिस प्रमुख ने एक रिपोर्ट पेश करते हुए चर्चों पर हुए हमले को चोरी की घटना में तब्दील करने की मंशा से सभी धार्मिक स्थलों में होने वाली चोरियों के आंकड़े देते हुए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को बताया कि चर्च की तुलना में मंदिरों में चोरी की घटनाएं अधिक होती हैं। इस तरह प्रधानमंत्री ईसाइयों के धर्मस्थलों पर हमले से ध्यान भटकाने का काम करके हमला करने वालों को अप्रत्यक्ष सहयोग देते हुए नजर नहीं आते क्या? पूरा खेल इस सफाई से हुआ कि सीधे-सीधे कोई आरोप नहीं लगा सकता। एक अनकहा संदेश यह भी लगे हाथ जाता है कि राजनाथ सिंह जो मामला बिगाड़ सकते थे मैंने हस्तक्षेप करके संभाल लिया। इसे कहते हैं ‘चतुराई’। यहां मामले को संभाल कर एक तरह का संदेश दिया तो ईसाइयों के कार्यक्रम में जाकर ठकुरसुहाती भी कह आए। इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि चोर से कहो कि चोरी करे और साहूकार से कहो कि फिकर मत करो। सच्ची बात तो यह है कि लाख छुपाओ छुप न सकेगा राज ये इतना सतही।
श्याम बोहरे, बावड़ियाकलां, भोपाल
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