सुप्रसिद्ध गीतकार पंडित प्रदीप के कालजयी गीत ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा…’ गाकर दिल्ली के शासन की बागडोर संभालने वाले अरविंद केजरीवाल अपने वरिष्ठ साथियों के साथ ही भाईचारा कायम नहीं रख सके।

आखिरकार प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) से बाहर का रास्ता दिखा कर अरविंद केजरीवाल ने सिद्ध कर दिया कि शाजिया इल्मी, अश्विनी उपाध्याय जैसे कई ‘आप’ के पूर्व नेताओं ने केजरीवाल पर तानाशाही और अहंकारी होने के जो आरोप लगाए थे, वे बिल्कुल सही हैं। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक अरविंद केजरीवाल ने महानता का दिखावा करने के लिए खुद को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से दूर रखा।

पर इस बैठक की पटकथा खुद लिखी। छह माह पुरानी घटना को लेकर पार्टी की बैठक ठीक ऐसे समय में रखवाई, जब उन्हें खांसी के इलाज के लिए दस दिन तक बाहर रहना था। वे चाहते तो इस बैठक को छुट्टी के दिनों के पहले या बाद में रख सकते थे। सूत्रों के मुताबिक अरविंद केजरीवाल ने दिखाने के लिए संयोजक पद से इस्तीफा तो दिया, पर वास्तव में पार्टी को निर्देश यह था कि अगर अरविंद केजरीवाल की इच्छा के अनुसार दोनों को पीएसी से बाहर न किया गया तो वे संयोजक पद पर नहीं रहेंगे।

प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव के इस्तीफा देने की पेशकश के बावजूद उनको जबरदस्ती निकाला गया। ताकि भविष्य में दूसरे कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल का विरोध करने की जुर्रत न करे। शायद अरविंद केजरीवाल को लगता है कि बहुमत की सरकार होने के कारण पांच वर्ष तक उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से कोई नहीं हिला सकता। तब तक वे जी-हुजूरी करने वाले अपने साथियों की बदौलत अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करते रहेंगे।

अगर समय रहते ठोस कदम न उठाए गए तो इस पार्टी का हश्र भी 1977 के जनता पार्टी जैसा हो सकता है। मयंक गांधी का ब्लॉग तो इसकी शुरुआत भर है!
संजीव सिंह ठाकुर, रेवाड़ी

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