उत्तर प्रदेश में मथुरा के जवाहरबाग में जो हुआ वह पुलिस-प्रशासन की एक गंभीर चूक तो थी ही, क्योंकि दो दिन के लिए पड़ाव डालने की अनुमति लेने वालों को दो साल तक किसने और कैसे वहां रहने दिया इसका कोई जवाब नहीं मिला है। इससे भी बढ़ कर वे अवैध रूप से हथियार और गोला-बारूद जमा करते रहे और पुलिस, प्रशासन और खुफिया तंत्र सोया रहा। बाग के भीतर सैकड़ों हथियारबंद लोग जमा हैं, इसकी पक्की सूचना होने के बावजूद बिना पर्याप्त तैयारी, फोर्स और हथियारों के पुलिस वहां अतिक्रमण हटाने चले गई, यह तीसरी बड़ी चूक हुई।
जैसा कि होना था, इसकी भरी कीमत चुकानी पड़ी और एक आइपीएस अधिकारी सहित कई लोगों को जान गंवानी पड़ी। ध्यान देने की बात यह भी है कि इस अतिक्रमण को कोर्ट के आदेश पर मजबूरी में हटाया जा रहा था। ये भूल-चूक अपनी जगह हैं, लेकिन बड़ा सवाल है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के क्या कोई ऐसे अवैध कब्जा जमा सकता है? संभव नहीं है, लेकिन सवाल यह भी है कि अगर जिला मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक के पद पर दमदार व्यक्ति आसीन हो तो क्या उन्हें अपने कर्तव्य के पालन से राजनेता रोक सकते हैं? किस हद तक? लेकिन यह भी सच है कि सरकार की आंखों की किरकिरी बनने और मलाईदार पोस्टिंग का लालच छोड़ने को कितने अफसर तत्पर हैं?
कमल जोशी, अल्मोड़ा
किसका पानी
देश में भू-जल स्तर अब तक की सबसे बुरी स्थिति में पहुंच चुका है, और सतह पर उपलब्ध जल भी तेजी से घट रहा है। पानी की कमी के चलते लोगों के बीच मारपीट, धक्का-मुक्की या खींचतान होना तो आम बात है, लेकिन पिछले दिनों झारखंड के रामगढ़ जिले में एक व्यक्ति ने पानी के लिए अपनी जान गंवा दी। न जाने देश में और कितने लोग पानी की किल्लत के चलते मौत को गले लगा लेते हैं। महराष्ट्र राज्य को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है, वहां नगर निगम की लापरवाही की वजह से लाखों टन पानी का बर्बाद होना कहां तक वाजिब है?
तान्या सिंह, नोएडा</strong>