मोदी सरकार भले ही दो साल का जश्न मनाते हुए जनता के समक्ष गुलाबी आंकड़े पेश करके अपनी उपलब्धियां गिनाने में लगी हो, लेकिन बैंको की स्थिति अब भी बदहाल बनी हुई है। देश के तमाम बड़े बैंक कर्ज में डूबे हुए हैं। भारतीय बैंको के हालात अब केवल देसी नहीं, बल्कि वैश्विक चिंता का विषय बने हुए हैं। बैंकों में फंसा हुआ कर्ज तेरह लाख करोड़ रुपए है जो कुछ देशों की जीडीपी से भी ज्यादा है। एशिया में भारतीय बैंको की हालत सबसे ज्यादा खराब है। पच्चीस में से पंद्रह सरकारी बैंकों का मुनाफा डूब गया। बैंकिग उद्योग का ताजा घाटा तेईस हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा है। वित्त मंत्रालय, बैंकिग क्षेत्र और शेयर बाजार को टटोलने पर पता चलता है कि भारतीय बैंकिग व्यवस्था पर संकट गहराता ही जा रहा है।
पिछले साल ही बैंकों का एनपीए 3.09 लाख करोड़ रुपए से बढ़ कर 5.08 लाख करोड़ रुपए हो गया, अकेले मार्च की तिमाही में बैंकों का एनपीए 1.5 लाख करोड़ पर पहुंच गया। सरकारी बैंकों का एनपीए अब शेयर बाजार में उनके मूल्य से 1.5 गुना है, यानी आपने अगर ऐसे बैंकों में निवेश किया तो वह प्रत्येक 100 रुपए पर 150 रूपए एनपीए ढो रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष के समापन के समय भारी घाटा दर्ज करने वाले बैंको में बैंक आॅफ बड़ौदा, बैंक आॅफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक आदि बड़े बैंक हैं। स्टेट बैंक का मुनाफा तो बुरी तरह टूटा।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की तीन मई को जारी रिपोर्ट बताती है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत मे नॉन परफार्मिंग असेट का हिस्सा अन्य एशियन देशों की तुलना में सबसे ज्यादा है। कुल बैंक कर्ज के अनुपात में छह फीसदी एनपीए के साथ भारत अब मलेशिया, चीन व इंडोनेशिया से भी आगे है अब तो अच्छे मानसून से ही विकास दर मे तेजी के आसार हैं। सरकार को भी दो साल के जश्न से बाहर निकल कर ठोस बैंकिग सुधार करने होंगे जिससे वह अब तक बचती नजर आई है।
संजय दूबे. सुलतानपुर, उप्र
बढ़े भाव
मुलायम लाल-सुर्ख टमाटर के भाव भी आजकल ऐसे बढ़ गए जैसे चुनाव के वक्त हाथ जोड़ कर जनता के बीच विनम्र दिखने वाले नेता के चुनाव जीतने के बाद लाल-बत्ती की गाड़ी में बैठने पर बढ़ जाते है।
शकुंतला महेश नेनावा, इंदौर, मप्र