‘बचाना होगा पानी’ (लेख, 28 अप्रैल) पढ़ा। जल के बिना मनुष्य और पशु-पक्षी या संपूर्ण जीव-जगत जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। हमारे जीवन में जल का किसी न किसी रूप में प्रयोग होता है। दरअसल, जल में हमारा जीवन समाहित होता है। लेकिन अब जल संकट ने हमारी नींद उड़ानी शुरू कर दी है। विश्व भर में चेन्नई सबसे अधिक जल संकट से जूझ रहा है। भारत जैसे विकासशील देश समय रहते सतर्क नहीं हुए तो पानी की गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है।
भारत में इक्कीस शहर पीने के पानी के लिए प्रदूषित जल पर निर्भर हैं। सरकार की जिम्मेदारी है कि घर का कचरा सहित और कल-कारखाने जो प्रदूषित जल निकल रहे हैं, उसके प्रबंधन का इंतजाम करे। कोई सख्त कानून बनाया जाए, ताकि पानी की बबार्दी न हो। इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां पानी का अभाव है। उनके लिए सरकार को नीति बनाने की जरूरत है, ताकि वर्षा के जल को संग्रहित किया जा सके। एक रिपोर्ट के अनुसार अगर वर्षा के पांच फीसद जल को संग्रहित कर लिया जाए तो सौ करोड़ लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ पीने का पानी मिल सकता है। बस जरूरत है अपनी सोच को विकसित करने की। इजराइल, आॅस्ट्रेलिया, सिंगापुर और चीन जैसे देश कम बारिश होने के बावजूद जल प्रबंधन की नीति अपनाकर बेहतर जीवन यापन के साथ जल समस्या से वंचित हैं। भारत तो नदियों का देश है। एक शहर में कई नदियां हैं। हमें भी बेहतर भविष्य के लिए जल प्रबंधन के लिए जागरूक होना चाहिए।
’सौरव कुमार चौधरी, गोरखपुर, उप्र
जंगल से जीवन
जगलों में लगी आग ने हमें एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम अपने जंगलों की रक्षा कर सकेंगे। उत्तराखंड के जंगल में लगी आग ने आने वाले जीवन पर खतरे की सूचना दी है। यह पहली घटना नहीं है जब राज्य के जंगलों को आग की घटना का सामना करना पड़ा है। पिछले साल भर में जंगलों में आग लगने की 939 घटनाएं हो चुकी हैं। देश में इसे पहले भी जंगलों में आग लगी थी, पर राज्य और केंद्र सरकारों ने इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। कुछ वक्त पहले मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में भी भीषण आग लग गई थी।
जंगल में लगी आग का असर सिर्फ इंसानों पर नहीं, बल्कि मुख्य रूप से पेड़-पौधे एवं जानवरों पर पड़ता है। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि पर्यावरण मंत्रालय और अन्य प्राधिकरण वन क्षेत्र में आग लगने की घटना को किसी ठोस नीति की आवश्यकता महसूस नहीं की जाती है। भारत पेरिस समझौते में अपनी अहम भागीदारी की बात करता है, वहीं यहां की सरकार आज जंगलों में लगी आग पर मौन धारण किए बैठी है। एक जंगल जलने से सिर्फ पेड़ नहीं, बल्कि विभिन्न प्रजातियां जल कर राख हो जाती हैं। सरकार को समझना चाहिए कि जंगलों की आग सिर्फ खबर नहीं, बल्कि एक अहम मुद्दा है, जिसपर हमें ठोस कदम उठाने चाहिए।
’अनिमा कुमारी, पटना, बिहार