एक सुंदर समाज के निर्माण के लिए हमें शस्त्रों की नहीं, बल्कि हमेशा सहज प्रेम की आवश्यकता होती है। इसके बिना सुंदर समाज की कल्पना संभव नहीं है। अगर किसी प्रकार से एक सुंदर समाज निर्मित हो भी गया, तो उसमें भाव तो होगा, लेकिन बिना किसी रस का। उसमें न तो कोई अलंकार होगा और न ही कोई मधुर भाव। इसलिए सहज और मधुर प्रेम अति आवश्यक है।

रास्ते तो अनेक हैं, लेकिन सही मार्गदर्शक एक भी नहीं है। संसार में कदम-कदम पर भटकाने वाले महारथी बैठे हुए हैं। जो हमेशा भ्रमित करते रहते हैं। लोग अक्सर भ्रमित हो जाते हैं और वहीं से समाज की संरचना ठीक से नहीं हो पाती, क्योंकि मनुष्य का अच्छा आचरण ही एक समाज की नींव रखता है।

अच्छे समाज के निर्माण के लिए हमें मोटे-मोटे वेदों या ग्रंथों की जरूरत नहीं, बल्कि एक सहज प्रेम की जरूरत है। प्रेम किसी के प्रति भी हो सकता है- पुस्तक के प्रति, दोस्त के प्रति, माता-पिता के प्रति, बच्चों के प्रति, और अपने विचारों के प्रति भी हो सकता है।

सामाजिक चेतना जब एक विशेष आदर्श से प्रभावित होती है और लोगों में उस आदर्श के कारण नवजागरण पैदा होता है, तभी सामाजिक जागरूकता संभव होती है। जब तक इसकी कमी रहेगी, तब तक सुंदर और मजबूत समाज का निर्माण कतई नहीं हो सकता, सामाजिक परिवर्तन की बात तो बिल्कुल दूर की बात है। अच्छे समाज का निर्माण मधुर प्रेम से स्थापित होता है।

एक ऐसे समाज का निर्माण होना चाहिए, जहां वर्ण व्यवस्था का नकली भेद छिपा हुआ न हो। जहां सभी के मन में एक दूसरे के लिए सेवा भाव हो। तभी जाकर कहीं एक नया समाज रूपी भवन बन कर तैयार होगा। जहां नई आशा आकांक्षाएं हों, जहां सकारात्मक सोच विराजमान हो, वहीं से एक नया बदलाव आएगा, जो हमारी भावी युवा पीढ़ी को नई दिशा प्रदान करेगा।
’समराज चौहान, कार्बी आंग्लांग, असम</strong>