सरकारें किसानों की दशा सुधारने का दम तो भरती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ है। दशकों से किसानों की आत्महत्या का दौर जारी है। विगत तीन वर्षों में सरकारी आंकड़ों के अनुसार सत्रह हजार किसानों द्वारा आत्महत्या करना दुखदायी खबर है। एक ओर सरकार दावा करती है कि किसानों को कम कीमत पर बीज-खाद उपलब्ध करा रही है, सिंचाई का प्रबंध कर रही और बैंकों से कम ब्याज पर कर्ज दिला रही है।
मगर अगर उन दावों में सच्चाई होती, तो उन किसान आत्महत्या करने के लिए विवश नहीं होते? कभी बाढ़, कभी सुखाड़ और कभी बेमौसम बरसात किसानों की मेहनत पर पानी फेर देती है। फसल बीमा योजना भी उनके नुकसान का सही भरपाई नहीं कर रहा है। सब कुछ सही रहा और पैदावार अच्छी हुई, तब भी उन्हें अपनी उपज की सही कीमत नहीं मिल पाता है।
आज जिस अनुपात में महंगाई बढ़ रही है, उस अनुपात में अनाजों की कीमतें नहीं बढ़ रही है, इसीलिए आज किसान कृषि कार्य छोड़ कर रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे शहरों में भटक रहे हैं। किसानों को जमीनी हकीकत को ध्यान में रख कर उनकी भलाई के लिए योजना बनानी चाहिए।
- हिमांशु शेखर, केसपा, गया