भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन सारी सीमाएं लांघ चुका है। आज एक डालर की कीमत सतहत्तर रुपए से अधिक है। इस अवमूल्यन के विभिन्न कारण हो सकते हैं, पर भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट को किसी भी कारण के पीछे छिपाया या नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। देश के अर्थशास्त्री निश्चित रूप से इस गिरावट के समाधान खोजने की कोशिश में व्यस्त होंगे और यह उन विशेषज्ञों का काम भी है।

बाजार पर कमजोर रुपए के दुष्प्रभाव अवश्यंभावी हैं। क्या होगा, क्या हो सकता है और क्या होना चाहिए, यह सब प्रश्न वास्तविक रूप में हमारे समक्ष हैं, लेकिन भारतीय समाज इन दुष्प्रभावों से बेखबर होकर लाउडस्पीकर, हनुमान चालीसा, हिजाब और हलाल मीट पर निरर्थक बहस में व्यस्त हैं। दलगत राजनीति, चुनाव आदि लोकतंत्र के सामान्य कार्यकलाप हैं और यह सब चलता रहेगा, पर जनता को खुशहाल, सरल, सुगम और जरूरत की वस्तुएं खरीदने में समर्थ समाज चाहिए।

इस दृष्टि से भारतीय राजनेताओं को जनता की वास्तविक आवश्यकताओं तथा मूलभूत सुविधाओं के बारे में विचार करना चाहिए। मुफ्तखोरी, फालतू बंदरबांट और महंगाई सब पर लगाम होनी चाहिए, अन्यथा हम निश्चित रूप से अनिश्चित भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं। यह कोई अच्छा संकेत नहीं है।

इशरत अली कादरी, भोपाल</strong>