समय से किसी रोग का इलाज न किया जाए तो वह लाइलाज हो जाता है। यह बात वर्तमान में किसी भी प्रकार की परीक्षा पर सटीक बैठती है फिर वह चाहे प्रतियोगी परीक्षा हो या महाविद्यालयी या इंटरमीडिएट की। नकल का ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के बहराइच का है, जहां के कार्यवाहक केंद्राध्यक्ष ने प्रबंधन तंत्र के मनमानी हस्तक्षेप और परीक्षा में नकल कराने के दबाव के चलते, विश्वविद्यालय कुलपति को मेल द्वारा अवगत कराना पड़ा। ऐसे अनेक निजी महाविद्यालयों के उदाहरण है जहां नकल का खेल धड़ल्ले से हो रहा है।

सरकार को हस्तक्षेप कर विश्वविद्यालय को निर्देश देना चाहिए कि सभी प्रकार के शिक्षण संस्थानों में वे ही प्राध्यापक अध्यापन कार्य में लगें, जिनका विश्वविद्यालय में अनुमोदन हो। प्रत्येक परीक्षा पाली की आवाज सहित सीडी विश्वविद्यालय द्वारा मंगवाई जाए और औचक निरीक्षण परीक्षा में ही नहीं, हर माह शिक्षण सत्र के दौरान किया जाए। जो संस्थान निर्देशित मानक पर खरे न उतरें उनकी मान्यता रद्द करने में तनिक भी हीलाहवाली न की जाए। तभी नई शिक्षा नीति की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।

पवन कुमार मधुकर, रायबरेली