खबरों के मुताबिक सरकार बहुत सारी दूसरे महकमों की तरह पटना हवाई अड्डा और बिहार की सात सड़कें भी निजी हाथों में देने जा रही है। पटना से निजी पैसेंजर ट्रेनें भी चलेंगीं। देश की जनता को इस बात को ध्यान से सुनना चाहिए। मेरी यह साफ राय है कि देश की सरकार अत्यधिक निजीकरण कर आम जनता के भविष्य के लिए अच्छा नहीं कर रही है। इसे ऐसे समझा जा सकता है। कार्पोरेट घरानों द्वारा साजिश के तहत चीजों को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया जा रहा है और भारत के भविष्य को काल्पनिक रूप से तालिबान और इस्लामीकरण का भय दिखाया जा रहा है।

मान लीजिए कि सजग नहीं रहने पर इस देश में भविष्य में इस तरह की किसी समस्या का कोई डर हो भी, तो इसका उपाय क्या केवल यही है कि देश की जनता को पूरी तरह से पूंजीपतियों के हाथ में गिरवी रख दिया जाए?

सही है कि निजीकरण को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। लेकिन आम जनता की सुख-सुविधाओं से संबंधित दैनंदिन चीजों और जनकल्याणकारी योजनाओं को प्रभावित करने वाली चीजों का निजीकरण नहीं होना चाहिए। पिछले वर्ष आपाधापी में पारित कराए गए तीनों कृषि कानून भी इसी खेल के हिस्से हैं। इस सरकार को इस देश की ज्यादातर आबादी को प्रभावित करने वाले कानूनों को लागू करने की कोई जल्दी नहीं है।

कश्मीर में धारा 370 को हटाने या तीन तलाक जैसे कानूनों का असर सिर्फ मनोवैज्ञानिक ही है। आम जनता के सामान्य जीवन पर इनका कोई बड़ा प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। मतलब स्पष्ट है। कार्पोरेट घरानों की योजना देश के संसाधनों पर धीरे-धीरे कब्जा करना है, लेकिन यह मंशा कई तरह के पर्दों में ढकी रह जाती है।
’राधा बिहारी ओझा, पटना, बिहार