हमारी अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति कोविड-19 के नकारात्मक प्रभाव से जूझने का अद्भुत सामर्थ्य रखती है। हमें इस शक्ति को जागृत करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। हमें कोविड-19 को लेकर लगातार आ रहे नकारात्मक समाचारों से अपने एवं अपने परिवार को दूर रखने की जरूरत है। हालांकि प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपने मूलभूत कर्तव्यों का परिपालन करते हुए अपने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन कर रहा होता है। ऐसे में हमें मात्र ‘ज्ञाता दृष्टा’ भाव के अनुरूप चलना होगा। इस संदर्भ में आवश्यकता से अधिक सोच-विचार मनोवैज्ञानिक रूप से तनाव का कारण होते हैं। ऐसे में तनाव के चलते हम मानसिक रूप से सकारात्मक नहीं रह पाते। इसलिए आंतरिक ऊर्जा संचय के लिए आध्यात्मिकता का भी सहारा लिया जा सकता है।

वास्तव में हमें वर्तमान दौर में अधिक से अधिक सकारात्मकता को आत्मसात करने की नितांत आवश्यकता है। ऐसा होने पर ही हम विकसित आत्मबल के माध्यम से आसन्न संकट से पार पा सकते हैं। नकारात्मक समाचार व्यथित भी करते हैं और निराश भी करते हैं। ऐसे में अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखने के लिए हमें अपनी अपनी अभिरुचियों को जागृत करना होगा। मानसिक रूप से इसके नकारात्मक परिणामों को लेकर उद्वेलित या व्यथित होने की कतई आवश्यकता नहीं है। ऐसी स्थिति में हमें आवश्यक सावधानियों के साथ-साथ अपने सोच-विचार और व्यवहार की प्रकृति में भी आमूलचूल परिवर्तन करना चाहिए। इस संदर्भ में सकारात्मक समाचार संदेश के माध्यम से मीडिया महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकता है।

हमारी कल तक की प्राथमिकताएं कुछ और थीं और अब हमारी प्राथमिकता में जो बदलाव आया है, उसे समझना होगा। स्वाभाविक है कि इस समय अपने और अपने परिवार की सुरक्षा पर ही गौर करना है। ऐसे में अगर हम नकारात्मक हो जाएं, तो हम न खुद संभल पाएंगे और न ही परिजनों को संभाल पाएंगे। दरअसल, हमारे पास अन्य कोई ऐसा विकल्प नहीं है जो हमें त्वरित रूप से सकारात्मक परिणाम दे सके। लेकिन विकसित आत्मबल के चलते हम गहन अंधकार में भी आशा की किरण का संचार कर सकते हैं। इस समय सबके पास समय ही समय है। ऐसे में समय का सदुपयोग करते हुए भविष्य की कार्य योजना का ताना-बाना बुना जाना चाहिए। अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुरूप व्यक्तित्व निर्माण की आधारशिला भी रखी जा सकती है।

हमें अपने आचरण और व्यवहार की समीक्षा करते के लिए आत्मावलोकन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। परिवार में हमारी भूमिका अलग-अलग रूप में होती है। इसलिए हमें हर एक स्वरूप में अपने आप को निहारने की जरूरत है। आध्यात्मिक रूप से यह सिलसिला आत्म समीक्षा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। परिजन परस्पर परिजनों की भावी भूमिका के संबंध में भी योजना का निर्माण कर सकते हैं।

भविष्य की परिकल्पना को सार्थक स्वरूप प्रदान करने की दिशा में यथार्थ के धरातल पर अपनी शक्ति और सामर्थ्य का आकलन अत्यंत आवश्यक है। इस दृष्टि से कोविड-19 के विकट दौर ने हमें एक अवसर उपलब्ध कराया है। निश्चित ही इस अवसर का लाभ लेते हुए हम नकारात्मक वातावरण को सकारात्मक दिशा की ओर मोड़ सकते हैं।
’राजेंद्र बज, हाटपीपल्या, देवास, मप्र