पूर्णबंदी के चलते पिछले वर्ष समूचे वातावरण या पर्यावरण में बहुत बड़ा बदलाव आया था। बाजार, गाड़ियां, कल-कारखाने, सभी कुछ बंद थे। कार्बन गैस और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन रूक सा गया था। उन दिनों साफ आसमान और स्वच्छ नदियों को देख कर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कम होता सा महसूस होता था।

लोगों की आवाजाही नहीं होने से जानवरों तक ने जंगलों को छोड़ निर्भीक होकर शहरों-गांवों का रुख कर लिया था। शहरों की सीमाओं से दूर-दूर तक साफ-साफ दिखने वाली इमारतें, पहाड़ों की चोटियां ऐसी लगती थीं, मानो उन्हें खींच कर बिल्कुल पास ले आया गया हो। देश के बड़े-बड़े शहर जो यातायात की बहुलता से प्रदूषण की मार झेल रहे थे, वहां भी सड़कों पर वाहनों का आवागमन बंद होने से प्रदूषण का नामों निशान तक नहीं था।

अब पूर्णबंदी के बाद जिंदगी धीरे-धीरे अपने पुराने ढर्रे पर लौट रही है। हाट बाजारों में, रेल-बसों में भीड़ होने लगी है। यह भी जरूरी है, लेकिन इसके बावजूद सच यह है कि अपने आसपास के वातावरण और पर्यावरण को बचाना आवश्यक हो जाता है।

बढ़ते प्रदूषण को कम करने में हम सभी को कभी-कभी दोपहिया अथवा चारपहिया वाहनों का उपयोग न कर पैदल जाना-आना कर या साइकिल चला कर अपनी भागीदारी देनी चाहिए, ताकि पूर्णबंदी के दिनों में बने स्वच्छ और साफ वातावरण को कुछ हद तक बनाए रखने में कामयाबी मिल सके।
’नरेश कानूनगो, गुंजुर, बंगलुरु, कर्नाटक