जेलों में विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। ऐसे संवेदनशील मामलों पर सर्वोच्च अदालत का ध्यान जाना गरीब और अनपढ़ कैदियों के हित में है। शिक्षा के अभाव में कैदियों का जीवन किसी त्रासदी से कम नहीं है। कई बार देखने में आता है कि जमानत के पात्र होने या जमानत मिल जाने के बावजूद तकनीकी खामियों के कारण उन्हें त्वरित न्याय नहीं मिल पाता है और नाहक सजा भुगतना पड़ती है। व्यवस्था में उभरी खामियों के मद्देनजर सर्वोच्च अदालत ने नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
अदालत का मानना है कि जमानत मिलने के वावजूद कैदी एक महीने के भीतर बांड प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं तो अदालतों को लगाई गई शर्तों को संशोधित करने पर विचार करना चाहिए। अदालत ने अन्य पहलुओं पर भी विचार करने की बात कही। आज के हालात में व्यावहारिक समाधान की ओर बढ़ना जरूरी है, तभी जेलों में बंद कैदियों की संख्या कम हो सकती है। वहीं अपनी रिहाई का इंतजार कर रहे लोगों को भी न्याय मिलेगा।
- अमृतलाल मारू ‘रवि’, इंदौर</strong>