संपादकीय ‘विपक्ष की पीड़ा’ में उल्लेख है कि केंद्रीय जांच एजंसियों द्वारा विपक्षी नेताओं के यहां डाले जा रहे छापों के विरोध में नौ विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। वास्तव में शासन भी भ्रष्टाचार को रोकना चाहता है और सरकारी एजंसियों का भी यही काम है। भ्रष्टाचार का रोग काफी फैल चुका है, जिसे रोकना बहुत जरूरी है, मगर उसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। सत्ता के साथी और सत्ता के समर्थक या दलबदल कर सत्ता से जुड़ने वाले आदि क्या भ्रष्टाचारी नहीं हैं? आश्चर्य है कि अगर आरोपी सत्ता से जुड़ जाएं तो जांच और मुकदमे आदि सब लंबित हो जाते हैं और जांच एजंसियों से उन्हें राहत भी मिल जाती है।
उक्त तथ्यों के मद्देनजर कहना होगा कि अगर छापा डाला गया है, तो अंतिम निर्णय आने तक मामला न्यायालय में चलना चाहिए और यथासंभव उसके साथ सख्ती भी होना चाहिए। महज संख्यात्मक दृष्टि से नहीं, बल्कि गुणात्मक दृष्टि से छापे डालना जरूरी है अन्यथा लोकतंत्र और जांच एजंसियों से लोगों का विश्वास उठ जाएगा।
- बीएल शर्मा ‘अकिंचन’, तराना-उज्जैन