‘यह घोंघा समाज’ बहुत समसामयिक लगा। हमारे यहां कहावत है, ‘नया नौ दिन पुराना सौ दिन’। यानी नया भी कुछ दिनों में पुराना ही हो जाएगा। लेकिन आज की पीढ़ी इस बात को समझना ही नहीं चाहती। उसे फैशन के अनुरूप नित नए वस्त्र चाहिए। बिना किसी वजह के बस तीस-चालीस बरस पुराने मकानों को तोड़ कर नया बनाया जा रहा है। यह सब हमारे समाज में अंधाधुंध बढ़ते उपभोक्तावाद का ही परिणाम है। इससे बच कर रहने में ही हम सब की भलाई है।
नवीन थिरानी, नोहर