सर्दी हो गर्मी हो या बरसात हो, किसान दिन-रात खेतों में मेहनत करता है और फसल उगाता है, जिससे पूरे विश्व की भूख मिटती है। अक्सर खेतों में तैयार हो चुकी फसल बाढ़ आ जाने से बर्बाद हो जाती है, कभी सूखा पड़ जाता है और पानी के बिना फसल नहीं हो पाती। कई बार अच्छी फसल होने के बावजूद भी किसानों को बाजार में सही कीमत नहीं मिल पाती। किसानों को अक्सर इस तरह के नुकसान झेलने पड़ते हैं। ऐसे मेहनती किसानों को हाल ही में एक ने ‘आतंकवादी’ कहा और एक सांसद ने ‘मवाली’ कह दिया।

मामले के तूल पकड़ने के बाद सांसद ने खेद जताया, लेकिन इससे उनके दुराग्रह का पता चल गया। जबकि एक पूर्व प्रधानमंत्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। आज यही किसान पिछले कुछ महीनों से सड़कों पर हैं। सरकार का कहना है कि नए कृषि कानून वापस नहीं होंगे, जबकि किसानों की मांग है कि नए कृषि कानून बिना शर्त वापस हों। कृषि मंत्री और किसान संगठनों के बीच कई दौर की बातचीत में कोई समाधान नहीं निकला। जब तक सरकार और किसान अपने रुख में लचीलापन नहीं दिखाएंगे, तब तक कुछ भी हासिल नहीं होगा।
’चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली</p>