आज तकनीक का दौर है और हम सभी को मालूम है कि तकनीक हमें ताकतवर बनाती है तो यह भी पता है कि यह हमें कमजोर भी बनाती है। ताकतवर का तात्पर्य यहां धीमे कामों को तेजी से करना, कम समय में ज्यादा काम करना या जल्दी हो जाना। प्रौद्योगिकी का हमारे ऊपर हावी होना या उसको अपनी आदत बना लेना कमजोरी की निशानी है।

एक सर्वे के अनुसार दुनिया में दस से बारह घंटे लोग प्रौद्योगिकी से घिरे रहते हैं। कुछ के लिए तो यह मजबूरी है, क्योंकि यह रोजगार का माध्यम है, लेकिन बाकी लोग खासकर युवा वर्ग के लोग, जिनकी उम्र अभी खेलने-कूदने, पढ़ने-लिखने की है, वे चार से पांच घंटे बेमतलब के तकनीक को अपनी आदत बना रहे हैं। आगे चलकर यही आदत मानसिक तनाव, स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का रूप ले लेती हैं।

वहीं स्मार्टफोन की बात करें तो एक विशेष ऐप पर बहुत संक्षिप्त या छोटी अवधि के वीडियो आते हैं, जिसे हर एक दस से पंद्रह सेकंड के बाद स्क्रीन को छूना पड़ता है, जिससे कहीं न कहीं हमें एक जगह किसी एक विषय के बारे में अधिक समय तक उस पर चर्चा करने या सोचने-समझने की आदत को छुड़ा रही है। तो क्या हम अब यह कह सकते हैं कि इंसानों के ऊपर तकनीक हावी हो चुकी है?

क्या इंसान बगैर इन तकनीकी के नहीं रह सकता? वैसे इंसान को विवेकशील प्राणी कहा जाता है तो उम्मीद की जा सकती है कि वह टेक्नोलाजी को खुद के ऊपर हावी नहीं होने देगा, क्योंकि किसी सजीव चीज का निर्जीव के गिरफ्त में आकर कठपुतली बन जाना बात पचने लायक नहीं है। इंसान ने तकनीक का विकास किया है, न कि तकनीक ने इंसानों का।