काफी देर से ही सही, आखिर अलगाववादी नेता और खूंखार आतंकवादी यासीन मलिक को एनआइए की एक अदालत ने सजा सुना दी। उसकी शातिरी इसी से पता चलती है कि मौत की सजा से बचने के लिए उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। इतने गंभीर आरोपों के बावजूद लगभग बत्तीस वर्षों तक वह न केवल देश में बिना रोक-टोक घूमता रहा, बल्कि उसका महिमा मंडन शांति के मसीहा और गांधीवादी के रूप में भी किया जाता रहा। क्या यही है आतंक के खिलाफ हमारी जीरो टालरेंस नीति?

अगर अनगिनत परिवारों का भविष्य तबाह करने वाले ऐसे दुर्दांत अपराधियों को इसी प्रकार प्रभावशाली लोगों का संरक्षण मिलता रहेगा, तो क्या कभी भारत से आतंकवाद को समाप्त किया जा सकेगा? क्योंकि इतने वर्षों के बाद भी कश्मीरी हिंदुओं के संहार के कई दोषियों को उनके किए की सजा अभी मिलनी बाकी है।

निक्की सचिन जैन, मुजफ्फरनगर