सोमवार को भारत और रूस के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात से यह साफ हो गया कि दोनों देशों के बीच जो संबंध पहले से स्थापित था, वह वर्तमान में भी कायम है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रूसी राष्ट्रपति ने विगत दो सालों यानी जब से कोरोना महामारी आई है, तब से किसी भी देश का दौरा नहीं किया था। अब वे भारत को प्राथमिकता देते हुए और एक सच्चे मित्र के कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए हिंदुस्तान की यात्रा पर आए हैं।
दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच हुई गर्मजोशी से मुलाकात को लेकर अमेरिका के मन में कुछ खटपट जरूर हुई होगी। क्योंकि वह यह कभी नहीं चाहता कि कोई भी देश, जो उसका रणनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक साझीदार हो, वह रूस के साथ संबंध बनाए रखे। अमेरिका ने इसका उदाहरण् पेश करते हुए भारत और रूस के बीच एस-400 समझौते को लेकर भारत को हिदायतें दी थी। साथ ही भारत को रूस के साथ यह समझौता न करने को कहा था।
हालांकि, भारत ने अमेरिका की बातों का दरकिनार किया। लिहाजा हिंदुस्तान ने रूस के साथ एस-400 रक्षा सौदा समेत कई अन्य सौदे किए। साथ ही दोनों राष्ट्रों के बीच 2021 से लेकर 2031 यानी दस वर्षों तक सैन्य सहयोग को लेकर भी समझौता हुआ।
भारत की स्वतंत्र नीति और जिम्मेदारी भरे कदमों के लिए रूसी विदेश मंत्री ने भारत की जम कर तारीफ की है। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका को आड़े हाथों लिया। बता दें कि पुतिन के भारत आगमन से कई देशों के अंदर हलचल मची होगी। चीन की तो नींद उड़ गई होगी। क्योंकि हाल के दिनों में चीन और रूस का रिश्ता जगजाहिर है। चीन के मन में भी कुछ अटकलें चल रही होंगी। कई अन्य देशों के मन में भी यह सवाल जरूर उठा होगा कि बदलता भारत अमेरिका की ओर झुक रहा है, तो यह कैसे संभव हो पाया?
खैर, रूसी राष्ट्रपति के भारत दौरे से पूरे देशवासियों को कई उम्मीदें होंगी। साथ ही अफगानिस्तान एक ज्वलंत मुद्दा है, इसे लेकर भी रणनीति बनेगी, ताकि भारत का अफगानिस्तान में डूबते निवेश को किसी तरह ऊपर किया जाए। साथ ही तालिबान की क्रूरता पर पर भी अंकुश लगाने को लेकर दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच चर्चा हुई है। बहरहाल, भारत को पुतिन के आगमन से कितना फायदा मिलता है और अफगानिस्तान के साथ रिश्तों में कितना सुधार आता है, यह आने वाला वक्त तय कर देगा।
’शशांक शेखर, आईएमएस, नोएडा</p>