मनुष्य ने अपने जीवन काल में कई बदलाव किए और देखे, अपनी जीवनशैली को एक नया आयाम दिया। हम जानते हैं कि हर एक बदलाव अपने साथ सकारात्मक और नकारात्मक दोनों बिंदु लाता है। हमें देखना होगा कि इनका हमारे जीवन में इनका अनुपात कितना है, क्योंकि आधुनिक होने का मतलब यह नहीं है कि आप अपनी संस्कृति को भूले हैं, बल्कि इसका अर्थ है कि आप अपनी विचारधारा में समाज में सकारात्मक परिवर्तन करने वाले नवीन मतों को स्थान प्रदान करें।

हम जानते हैं कि मनुष्य आरंभ में अपने खानपान की पूर्ति जंगल के फल-फूल आदि से करता था इसके अलावा वह जंगली जानवरों का शिकार करके भी अपनी भूख को मिटाता था। हो सकता है कि आरंभ में मनुष्य के पास जंगली जानवरों का शिकार कर अपनी भूख मिटाना एक मजबूरी रही हो, लेकिन जब आज हमारे पास विभिन्न प्रकार की खाद्य फसलें उपलब्ध हैं और इसके बावजूद अगर हम आज मनुष्य के वर्तमान की खानपान शैली पर ध्यान न दें, तो यह चिंताजनक है।

आज हमारे खानपान में जंक फूड, मांसाहार, नशीले पदार्थ की मात्रा लगातार बढ़ रही है जो स्वाद के लिहाज से तो बेहतर हो सकते हैं, लेकिन स्वास्थ्य के लिहाज से तो बिल्कुल नहीं। अगर हम बात करें आज मानवीय रिश्तों की तो इसके स्वरूप भी काफी हद तक परिवर्तित हुए हैं। एक दौर था जब सोशल मीडिया नहीं था और बरसों मिलने के बाद भी रिश्तो में बड़ी मिठास होती थी। जबकि सोशल मीडिया आने के बाद यह सब आभासी हो चुका है, जिसके चलते आज हर एक व्यक्ति केवल अपनी जरूरतों को साधे हुए है। इसके चलते समाज में सहयोग की भावना खत्म हो जाती है और और सामाजिक तनाव देखने को मिलता है। इसलिए हमें समझने की जरूरत है कि हम समय के साथ बदलें तो जरूर, लेकिन ऐसे रूप में, जहां हमें हमारे मनुष्य होने पर गर्व हो।
’सौरव बुंदेला, भोपाल, मप्र

अभाव के बीच

सरकार ने पिछले साल पूर्णबंदी के दौरान तीन करोड़ से अधिक राशन कार्ड रद्द कर दिए। पहले यह आरोप लगाया गया था कि सभी रद्द किए गए राशन कार्ड फर्जी हैं, लेकिन बाद में सरकारी सूत्रों ने स्वीकार किया कि तकनीकी कारणों से यह राशन कार्ड रद्द किए गए हैं। सभी राशन कार्ड आवश्यक रूप से फर्जी नहीं हैं, लेकिन बहुत से कारण हैं कि लोग अपने राशन कार्डों का नवीनीकरण नहीं करा पा रहे हैं। जानकारी का अभाव भी एक समस्या है। आमतौर पर ज्यादातर गरीब लोग ही राशन कार्ड धारक होते हैं आज भी हमारे देश में लाखों लोग ऐसे हैं, जिनके पास आधार कार्ड नहीं है। दो वक्त की रोटी के लिए दौड़-धूप करने वाले लोगों के पास इतना समय नहीं होता कि वे सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते रहें।

नौकरशाहों और सरकारी अधिकारियों का रवैया भी अच्छा नहीं होता है। सरकार को राशन कार्ड रद्द करने के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए और लोगों के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए। पूर्णबंदी के समय में जब आर्थिक व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो गई, लोगों की आजीविका खतरे में है, ऐसी स्थिति में सरकार को चाहिए कि वह सभी राशन कार्ड धारकों के साथ-साथ उन लोगों की भी मदद करे, जो खराब स्थिति के कारण भूख से दो-चार हैं। ऐसे लोगों को सरकारी राशन की दुकानों पर मुफ्त में राशन उपलब्ध कराने की कोशिश करने की आवश्यकता है। जनकल्याण के सिद्धांतों पर आधारित व्यवस्था में सरकार का यह दायित्व होता है।
’साजिद महमूद शेख, ठाणे, महाराष्ट्र</p>