हमारा खानपान ऐसा होना चाहिए, जो मात्र स्वादिष्ट ही न हो, बल्कि वह हमारी सेहत के लिए भी उचित होना चाहिए। कहते है, जैसा खाओ अन्न, वैसा हो मन। लेकिन मन ही नहीं, बल्कि तन और यही नहीं, अन्न को समय पर ग्रहण न करना और भूख से ज्यादा अन्न खाना तन को बीमारी युक्त करता है, तो बीमारी पर खर्च होने कारण अन्न धन पर भी भारी पड़ता है। चीन से अस्तित्व में आए कोरोना विषाणु की वजह भी वहां के लोगों द्वारा प्रदूषित जीव-जंतुओं का सेवन भी बताया गया है। भूखे पेट मरने वालों से ज्यादा आंकड़ा उनका होता है जो अपने पेट में अपनी भूख की क्षमता से अन्न डाल लेते हैं, क्योंकि ऐसा करने से शरीर को बीमारियां लग जाती हैं।
हृदयरोग, यकृत की बीमारी का कारण भी भूख से ज्यादा खाना खाकर अपने इन अंगों पर बोझ डालना हो सकता है। इसलिए अगर अपने तन, मन, धन को कोई नुकसान नहीं पहुंचाना है, तो अन्न उतना ही खाना चाहिए, जितनी भूख है और अन्न के अलावा दूसरी चीजों का सेवन भी उचित मात्रा में ही करें। हमारे देश में आजकल लोग खाने-पीने में भी दूसरे देशों की नकल करने लगे हैं। कुछ लोगों के सिर पर इसका खूब खुमार भी चढ़ गया है। इसके वशीभूत होकर लोग अपनी सेहत का भी खयाल रखना भूल गए हैं। यहां तक कि कुछ लोग अपने बच्चों को भी ऐसे खाने की आदत डाल देते हैं, जो बच्चों की सेहत पर भी भारी पड़ता है। लोगों को अपने बच्चों के खानपान पर गंभीरता से ध्यान रखना चाहिए, उन्हें ऐसा खाने-पीने की चीजों से परहेज कराने बारे में भी समझाना चाहिए, जो सेहत के दुश्मन हो।
इस बात का भी उल्लेख करना उचित होगा कि जरूरी नहीं कि बाहर का खानपान या तुरंता आहार ही लोगों की सेहत का दुश्मन बन रहा है, बल्कि कुछ लोग घर पर भी खाने की ऐसी चीजें बनाते हैं, जो सेहत के लिए उचित नहीं होता। आज भारत में खानपान उचित न होने के कारण बच्चों की सेहत भी खराब हो रही, छोटी उम्र में ही बच्चों को आंख, दांत और पेट की बीमारियों से जूझना पड़ रहा है। कुछ लोग समय बचाने के चक्कर में बच्चों को उचित खानपान नहीं करवाते। ऐसे लोग अपने परिवारजनों और बच्चों की सेहत की दुश्मन बनती है। आज हमारे देश में रक्तचाप, मधुमेह जैसी कई बीमारियां भी आम हो गई हैं। कम उम्र के लोग भी इन बीमारियों के शिकार हो रहे। इन बीमारियों को काबू में करने के लिए कई विशेष योजनाएं चल रही हैं, लेकिन ये प्रयास भी तभी सफल होंगे जब लोग अपनी सेहत के लिए खुद जागरूक होकर अपनी खाने-पीने और दिनचर्या को उचित बनाएंगे। खानपान में स्वच्छता न होने या फिर आसपास स्वच्छ न होना भी बीमारियों को दावत देता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी माना है कि भारत में प्रति व्यक्ति औसतन लगभग साढ़े छह हजार रुपए बीमारियों पर ही बर्बाद होता है। इस संगठन के अनुसार भी ‘स्वच्छ भारत अभियान’ देश के आमजन पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और गरीब लोगों के खून-पसीने की कमाई इलाज में बर्बाद होने से कुछ हद तक बच सकती है।
’राजेश कुमार चौहान, जलंधर, पंजाब</p>