शुरू से ही आम बजट को चाहे उसे किसी भी राजनीतिक पार्टी की सरकार ने क्यों न पेश किया हो, कुछ ने पानी के आधे भरे गिलास की तरह देखा है, कुछ ने इसे आधा खाली की नजर से देखा। बजट से देश के हर वर्ग को कोई खुश नहीं कर सकता। फिर आज तक जितने भी आम बजट पेश किए गए, उन्होंने देश की गरीबी मिटाने के लिए कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई है, अगर निभाई होती तो आज हमारे देश में गरीबी का नामोनिशान न होता और न ही कोई दो वक्त की रोटी को तरसता। महंगा इलाज किसी गरीब की मौत का कारण न बनता, किसी गरीब का बच्चा आधुनिक और नई टेक्नोलाजी की पढ़ाई को न तरसता।
1951-52 में जब पंचवर्षीय योजना को हरी झंडी दी गई थी, तब विनोबा भावे ने कहा था कि सरकार की सभी राष्ट्रीय योजनाओं का मकसद रोजगार बढ़ाना भी होना चाहिए। वैश्विक महामारी कोरोना ने देश की आर्थिक व्यवस्था को बहुत बुरी तरह चौपट कर दिया। अर्थव्यवस्था को बल देने वाले लगभग सभी साधन लंबे समय तक थमे रहे, लेकिन फिर भी सरकार ने मुफ्त का अन्न-धन बांट कर गरीबों की मदद की, लेकिन ऐसा करने से सरकार पर और आर्थिक बोझ बढ़ा, इस कारण महंगाई बढ़ी।
मगर अब जब देश कोरोना के साथ चलना सीख चुका है, तो सरकार को मुफ्त की योजनाओं पर कुछ समय के लिए पूर्ण विराम लगा देना चाहिए। सरकार को देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ उद्योग-धंधों और अन्य सभी छोटे-मोटे कारोबार को पटरी पर लाने के लिए इस बार के आम बजट में और ज्यादा विशेष योजनाएं अमल में लानी चाहिए। युवाओं को कृषि के साथ जोड़ने, कृषि में रोजगार बढ़ाने वाली योजनाओं को इस बार के आम बजट में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- राजेश कुमार चौहान, जालंधर