इस वर्ष पृथ्वी दिवस आकर गुजर गया। इस साल का मुख्य नारा था- ‘रिस्टोर आवर अर्थ’ यानी हम अपनी पृथ्वी को फिर से दुरुस्त करें। यह नारा हर वर्ष परिवर्तित होता रहता है और यह हमारे हर वर्ष के लक्ष्य को इंगित करता है। सर्वप्रथम 1969 में पर्यावरण पर यूनेस्को सम्मेलन में जॉन मैककोनेल के द्वारा पृथ्वी दिवस औपचारिक रूप से प्रस्तावित किया गया था। बाद में 1971 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव यू थान्ट द्वारा वर्नल इक्विनॉक्स पर प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस मनाने के लिए एक घोषणा पर हस्ताक्षर किया गया और यह पहली बार 1970 में मनाया गया। यह मौका दरअसल मनुष्यों को उनके द्वारा उत्पन्न पर्यावरणीय गिरावट की याद दिलाने का एक तरीका है और उन्हें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बंद करने की सलाह देता है जो उत्सर्जन स्तर को कम करने के लिए है। यह मानता है कि पृथ्वी और उसके पारिस्थितिकी तंत्र अपने निवासियों को जीवन और जीविका प्रदान करते हैं।
लेकिन दुख की बात यह है कि हम पृथ्वी दिवस मनाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने से कोसों दूर भटकते नजर आ रहे। इसका एक प्रमुख कारण है वैश्विक स्तर पर आर्थिक लाभ को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रों द्वारा की जानी वाली गतिविधि, जिससे पृथ्वी को अपूरणीय क्षति होती है और जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। जब तक हम इस विनाशकारी विकास को सीमित नहीं करेंगे, तब तक हम पृथ्वी को संरक्षित करने में सफल नहीं हो सकते।
साथ ही हमें यह समझना होगा कि इस परिवर्तन में जनभागीदारी की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए, क्योंकि केवल राष्ट्र और विश्व की सरकारों के भरोसे हम इस लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकते है। इसके लिए विश्व के सभी नागरिक को अपने स्तर पर पृथ्वी के संरक्षण में योगदान देना होगा। तभी हम भविष्य में अपनी पृथ्वी को अतीत की तरह देख सकते हैं।
’स्मिता सिंह, गोरखपुर, उप्र
भ्रम की सत्ता
दुनिया में हर तानाशाह में एक समानता होती है। वह हमेशा आक्रामकता के साथ अपनी बातों को विश्व या अपने नागरिकों के समक्ष रखता है। साथ में एक लाइन जरूर शामिल करता है। विदेशी ताकतें उनके देश का एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाना चाहती हैं। जबकि यह कोरी कल्पना और आधारहीन बातें होती हैं और महज भावनाओं को बहकाने वाली होती हैं। ऐसी बातें इसलिए की जाती हैं, ताकि उनके समर्थक भावनात्मक रूप से उनसे जुड़े रहे।
हाल ही में रूसी राष्ट्रपति पुतिन सालाना राष्ट्रीय संबोधन में कह रहे थे कि उक्रेन और एलेक्सी नवलेनी को लेकर पश्चिमी देश उनके देश को अस्थिर कर रहे हैं। दो दिन पूर्व ही चीनी सर्वोच्च नेता जिनपिंग भी इसी लहजे में बोल रहे थे कि ‘वैश्विक नियमों को एक देश या कुछ देश लागू नहीं कर सकते’। लेकिन उनके एक पूरवर्ती ने ही हांगकांग को लेकर एक राष्ट्र दो नियम लागू करने पर सहमति जताई थी। उसे वहां बलपूर्वक क्यों खत्म कर दिया गया? तो कहने का मतलब कि दुनिया के ताकतवर देशों के नेतृत्व भी विरोधाभासों और भ्रम के शिकार होते हैं।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड
साझा लड़ाई
कोरोना से बदतर होते जा रहे हालात के लिए एक अदालत ने चुनाव आयोग को फटकार लगाई और अब राजनीतिकों की ओर से कहा जा रहा है कि लोगों की लापरवाही से कोरोना में उछाल आया है। सवाल है कि मुख्य दोषी कौन है? अब एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से कुछ भी नहीं होगा। अब जरूरत इस बात की है सब मतभेद भुला कर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें मिल कर इस बीमारी से लड़ें और आम जनता भी जागरूक हो, लोग मास्क लगाएं, दूरी का पालन करें और साबुन से हाथ धोने की आदत डालें।
आज किसी भी नेता में इतनी योग्यता नहीं है जो इस समस्या को अकेले ही सुलझा सके, इसलिए सभी को एकजुट होकर ही इस बीमारी से लड़ना होगा, अन्यथा आने वाली पीढ़ियां और आने वाला इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा।
’चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली</p>