वोट और सत्ता के लिए मुफ्त में बांटी जा रही रेवड़ियों को लेकर घमासान चल रहा है। प्रधानमंत्री के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट भी चिंता व्यक्त कर रहा है। आमजन को दी जा रही मुफ्त की रेवड़ियों पर सब तर्क-कुतर्क कर रहे हैं। मगर बड़े घरानों, उद्योगपतियों के माफ किए गए कर्जों पर कोई भी मुंह नहीं खोल रहा है। जो मुंह खोल रहे हैं, उनकी कोई सुन नहीं रहा है।
यह कितनी दुखद बात है कि एक अधिकारी कर्मचारी 30 से 35 साल तक नौकरी करता है तो एक पेंशन दी जाती है। करीब दो दशक पहले पेंशन भी बंद कर दी गई। लेकिन सांसदों-विधायकों को एक नहीं, जितनी बार वे चुनाव जीतते हैं, उतनी पेंशन के हकदार हो जाते हैं।
साथ ही भूतपूर्व जनप्रतिनिधियों को अन्य सुख-सुविधा मिलती है, वह अलग। मुफ्त की रेवड़ियों के साथ साथ इन जनप्रतिनिधियों को इतनी भारी-भरकम मुफ्त में मिलने वाली सुविधाएं व पेंशन भी बंद होना चाहिए। क्या केंद्र सरकार इस दिशा में भी सार्थक पहल करते हुए कुछ भरोसेमंद कदम उठाएगी?
- हेमा हरि उपाध्याय, उज्जैन