हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक वैवाहिक रिश्ते को यह कह कर खत्म कर दिया कि दंपति के बीच यह रिश्ता भावनात्मक रूप से मर चुका है। दरअसल, आज के दौर में इस तरह की घटना बहुत ही आम हो गई हैं। कोई भी रिश्ता भावनाओं से जुड़ा होता है फिर चाहे वह मां-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी या कोई भी, बिना भावुकता कोई रिश्ता बन ही नहीं सकता।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय प्रशंसनीय हैं, लेकिन इस तरह के मामलों में निर्णय को लेकर अभी और कुछ संशोधन किए जा सकते हैं। न्यायालय ने अनुच्छेद 142 की अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर विवाह समाप्त कर दिया, लेकिन यह निर्णय आने में करीब दो दशक का समय बीत गया।

ऐसे में जरूरत है कि ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए त्वरित अदालत काम करे और एक निश्चित समय सीमा (सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित) के भीतर निर्णय दे, ताकि दोनों पक्ष अपनी आगे की जिंदगी नए सिरे से शुरू कर सके। पति-पत्नी का रिश्ता प्यार, विश्वास, भावना से जुड़ा होता है, अगर इनमें से किसी एक की भी कमी है तो फिर वह रिश्ता अर्थहीन है।
’अभिषेक जायसवाल, सतना, मप्र