चिकित्सा क्षेत्र में सबसे ज्यादा शोषण असंगठित क्षेत्र के लोगों का हो रहा है, जो कि सरकारों की अनदेखी के कारण किसी जरूरी इलाज के लिए बीमा कंपनियों के रहमो-करम पर आश्रित हैं। न केवल प्राइवेट, बल्कि सरकारी बीमा कंपनियों के बीमा धारकों को भी कमोबेश उसी प्रकार के शोषण का शिकार होना पड़ता है, जैसा कि प्राइवेट कंपनियों द्वारा किया जाता है।
टीपीए सिस्टम के तहत क्लेम लेने में बीमा धारकों के परिजनों को निराशा और बेबसी का कड़वा घूंट पीना पड़ता है। आपत्तिजनक तथ्य तो यह है कि बीमा नियंत्रक संस्थान इरडा यानी कि सरकार ने कंपनियों को बीमा प्रमियम में भारी-भरकम नाजायज वृद्धि की जो मंजूरी कोरोना काल में दी है, वह गैर-संगठित आबादी पर अत्याचार है।
अपने देश के नागरिकों को बेहतरीन, सुलभ और सस्ती चिकित्सा उपलब्ध करवाना सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए, पर केंद्र सरकार इस संदर्भ में अपवाद साबित हुई है, जो कि निराशाजनक है।
अमरनाथ बब्बर, किशनगंज दिल्ली</strong>