यह बात तो हम सभी जानते हैं कि हमारे देश में लड़कियों को हमेशा लड़कों से कम ही आंका गया है। शिक्षा हो या अधिकार, हर जगह उन्हें समझौता करना पड़ा है। यों देश की बेटियां हवाईजहाज तक उड़ा रही हैं, लेकिन आज भी देहाती इलाकों में हवाईजहाज उड़ाने वाले हाथ 18 की उम्र में पीले कर दिए जाते हैं।

हमारे देश में लोग कितने ही नारे लगाएं, लेकिन आज भी कुछ लोगों की सोच वहीं अटकी है कि लड़कियों को पढ़ाने से क्या होगा। वे तो सिर्फ शादी करके चूल्हा-चौका के लिए बनी हैं और इसलिए हमारे देश की आधी आबादी हाथ में डिग्री लेकर तो घूमती है।

एक देश तब कामयाब और विकसित हुआ माना जाता है, जब उस देश के लोग शिक्षित होते हैं। लेकिन सिर्फ किताबों को पढ़ने की डिग्री हासिल कर लेने से सब कुछ नहीं होता।

हमारे शिक्षित होने का मतलब है कि हम समाज में कोई बदलाव लाएं, अपने अधिकारों को जानें, अपने हक को पहचानें। यह कोई पहली बार नहीं जब बेटियों के शिक्षित न होने पर चिंता जताई गई है। बेटियों के अधिकारों और उनके हक की लड़ाई तो लंबे समय से चली आ रही है।

ऐसा नहीं है कि बेटियां आसमान नहीं छू रहीं, लेकिन आज भी कुछ बेटियों के सपने चूल्हे की आग में ही जलकर राख हो जाते हैं, क्योंकि हाथ में कापी और कलम थमाने के बजाय उन्हें बेलन और चिमटा थमा दिया जाता है और उनके सपनों का गला घोंट दिया जाता है और इसे ही न जाने कितने सपनों और अरमानों की मृत्यु रोज चूल्हे की आग में जलने या 18 की उम्र में शादी के गठबंधन में घुटकर हो जाती है।
’दिव्या शर्मा, नोएडा, उप्र