इस महामारी के दौर में सब कुछ घर में सिमटते जाने के दौर में इंटरनेट की उपयोगिता हमारे जीवन में बहुत अधिक बढ़ चुकी है। घर-गृहस्थी के उपयोग का हर सामान अब हम ऑनलाइन मंगवाने लगे हैं। हमारे दफ्तर भी अब मोबाइल स्क्रीन और लैपटॉप पर चलने लगे हैं। यूट्यूब पर एक निजी कंपनी के विज्ञापन में एक ग्रामीण इलाके की बच्ची ऑनलाइन कक्षा देख कर कहती है कि इनका स्कूल गया (नेटवर्क न होने से) और आ भी गया, हमारा स्कूल कब आएगा?
दरअसल, डिजिटल विभाजन आसान शब्दों में इंटरनेट सेवा की विषमता है, जिसके कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहले इंटरनेट उपयोग एवं उपलब्धता के लिए संसाधन, नेटवर्क और इंटरनेट की गति पर असमानता को इसका कारण माना जा सकता है। आज सरकार एक तरफ 5-जी नेटवर्क ला रही है और दूसरी तरफ किसी ग्रामीण क्षेत्र में फोन करने तक के लिए भी नेटवर्क उपलब्ध नहीं हो रहा है। एनएसएसओ के एक सर्वे के अनुसार 2017-18 में सिर्फ तेरह फीसद ग्रामीण इंटरनेट की सुविधा ले पा रहे हैं, जबकि शहर में यह सैंतीस फीसद है। साथ ही हमारे पास फोन में इंटरनेट होते हुए भी उसका उपयोग न कर पाना जैसे ऑनलाइन बिल भुगतान और अन्य ई-सेवाएं लेने में सक्षम न होना साक्षरता की कमी के कारण है।
विश्व आर्थिक मंच यानी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार 370 मिलियन विद्यार्थियों ने कोरोना के कारण ऑनलाइन शिक्षा की ओर रुख किया, वहीं हमारे पास उपकरण और नेटवर्क के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों की भी तस्वीर आई है, जहां विद्यार्थी या तो पेड़ पर चढ़ कर कक्षा ले रहे है बेहतर नेटवर्क के लिए या फिर अपनी कक्षा के लिए गांव के दूसरे लोगो पर आश्रित हैं, जिनके पास मोबाइल है।
पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु में राज्य सरकारों ने स्थिति का अध्ययन कर विद्यार्थियों को मोबाइल, टैबलेट और लैपटॉप देने की योजना बनाई है जो सराहनीय पहल है। लेकिन यह डिजिटल विभाजन क्या सिर्फ उपकरण मुहैया कराने से खत्म हो जाएगा? इसके लिए लोगों को डिजिटल साक्षरता के साथ बेहतर नेटवर्क भी चाहिए।
दूसरी ओर, कोरोना की वजह से लगाई गई पूर्णबंदी में जब आय के सारे उपाय रुके हुए हैं, कमाई बंद है, तो ऐसे में लोग महंगा इंटरनेट पैक कैसे लेकर कोई काम करेंगे या अपने बच्चों की पढ़ाई कराएंगे? लेकिन इंटरनेट कंपनियां लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने में लगी हैं, उन्होंने आपदा को अपने लिए कमाई का अवसर बना लिया है। यही वजह है कि उनकी कुल आय में भारी बढ़ोतरी देखी जा रही है। इंटरनेट के सस्ते दामों और उपलब्धता के लिए नेट न्यूट्रलिटी पर चर्चा करने के लिए पांच साल पहले एक समिति भी गठित हुई थी, पर उसके कुछ खास नतीजे सामने नहीं आए।
आज फिर से एक नए अध्ययन और रिपोर्ट की आवश्यकता हो गई है, क्योंकि एक बड़ी आबादी अब सिर्फ इस पर अपनी पढ़ाई और जीविका के लिए निर्भर हो गई है। अब इंटरनेट हमारे लिए पानी, बिजली जितना ही आवश्यक हो गया है और सरकार को इस तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने के बारे में सोचना चाहिए और डिजिटल विभाजन मिटाना चाहिए।
अनुष्का तिवारी, एचएसजीयू, सागर, मप्र