स्वामी विवेकानंद ने 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में भारत और हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया थे। उनके भाषणों को सुनकर सभी धर्मों के अनुयायियों को हिंदू धर्म को समझने तथा जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। उनके भाषण ने भारत और हिंदू धर्म का उत्थान पूरे विश्व में किया और हिंदू धर्म का मर्म समझाया। उन्होंने धर्म की संकीर्ण व्याख्या को तोड़ कर उसके व्यापक महत्त्व, नैतिक मूल्यों के उद्देश्यों को उभारा।
लेकिन इतनी सदियों बाद भी जब आज के समय में भारत के हरिद्वार नगरी में धर्म संसद का आयोजन होता है तो उसमें धर्म के नैतिक मूल्यों, सर्व धर्म समभाव के भावों को गायब कर दिया जाता है और अपनी संकीर्ण सोच के अनुसार हिंदू धर्म की व्याख्या की जाती है, जिससे हिंदू धर्म सहित भारत की छवि धूमिल होती है। विश्व में भी इस धर्म संसद की पत्र-पत्रिकाओं में चर्चा की हो रही है और भारत की आलोचना हो रही है।
विवेकानंद शर्मा, देवरिया, उप्र