वैश्विक महामारी कोरोना एक ओर अपना कहर बरपा रही है, वहीं पश्चिम राज्यों के तरफ आए चक्रवाती तूफान ताउते के बाद अब पूर्वी छोर पर यास की भी कयास तेज हो गई है। गौरतलब है कि आपदा प्रबंधन और उससे जुड़ी व्यवस्था को दुरुस्त और चौकस करना तय किया गया है, जिसमें आपदा राहत में पचहत्तर टीमों को लगाया गया है। साथ ही लगभग बीस टीम को आपातकाल के लिए तैयार किया गया है। राज्य और केंद्र समेत सभी आपदा अधिकारी भी यही प्रयास कर रहे कि समुद्री सीमावर्ती क्षेत्रों से लोगों को हटाया जाए, जिससे कम से कम जानमाल का नुकसान हो।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल हमेशा से देश के नागरिकों को आपदा से बचाव राहत कार्य करता आया है। तकनीक और भूगोल में लगातर हो रहे विकास के कारण ही यह संभव हो पाया कि चक्रवात के आने का अंदाजा, तीव्रता और प्रभाव पड़ने वाले क्षेत्रों की जानकारी पहले ही मिल जाती है। अन्यथा पहले आपदा आने के बाद ही राहत कार्य शुरू हो पाता था, जिसके कारण भारी जान-माल का नुकसान राज्य और देश को उठाना पड़ता था।

हालांकि अभी भी कई क्षेत्रों में बेहतर तकनीक की आवश्यकता है, जिससे कि भूकम्प जैसे प्राकृतिक आपदा के विषय में भी जानकारी मिल सके। उससे भी ज्यादा जरूरी है यह जानना कि आखिर क्यों प्राकृतिक आपदाएं हो रहीं? क्या इसके पीछे प्रदूषण और हम नहीं हैं? क्या इसको लेकर ठोस और महत्त्वर्ण कदम नहीं उठाने चाहिए? पहले हम लाखों-करोड़ों खर्च करके फैक्ट्री लगाते हैं, कार खरीदते हैं, प्रदूषण फैलाते हैं, उसके बाद फिर लाखो-करोड़ों खर्च करके वातावरण और जलवायु परिवर्तन पर बैठक और सम्मेलन करते हैं। इससे बड़ी विरोधाभासी बातें और क्या होंगी? बेहतर होगा कि हम प्रकृति के अनुकूल ही कदम उठाएं, जिससे दोहरी मेहनत और परेशानियों को भी कम किया जा सके।
’अमन जायसवाल, दिल्ली विवि, दिल्ली