मनुष्य जीवन रिश्तों से जुड़ा हुआ है। रिश्तों के कारण ही मनुष्य जीवन में आगे बढ़ने की, सफलता पाने की, शिक्षित होने की कोशिश करने और फिर कार्य करने की इच्छा रखता है। अगर रिश्ते मधुर हों तो जीवन सुखमय और खुशहाल बन जाता है, लेकिन रिश्तों में खटास या अनबन होते ही व्यक्ति भी टूट जाता है। रिश्ता आखिर बिगड़ता क्यों है? इसके पीछे व्यक्ति का अहंकार, सोच और उसका व्यवहार जिम्मेदार होते हैं और इसी कारण रिश्ते बदलते जा रहे हैं।

रिश्ते की अहमियत कोई मां से पूछे, जिसके लिए अपने बच्चे से बड़ा रिश्ता कोई नहीं है। इसलिए कहा जाता है कि औरत के लिए मां बनने से बड़ा दूसरा कोई सुख नहीं। किसी बहन से रक्षाबंधन के समय पूछिए कि भाई का रिश्ता क्या होता है। लेकिन वर्तमान युग में कहीं न कहीं इन रिश्तों की अहमियत कम होती जा रही है। कुछ लोग ‘मदर्स डे’ पर तो अपनी मां के साथ फोटो सोशल मीडिया पर डाल कर दिखावा करते हैं, जबकि अन्य दिनों वे अपनी मां से बात करना तो दूर, उन्हें खाना तक नहीं देते। शादी के बाद अपनी बहनों से हाल-चाल तक नहीं पूछते। ऐसे लोगों के लिए रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती है। वे सिर्फ दिखावे के लिए ही रिश्ते रखते हैं।

आज की व्यस्त जीवन शैली में रिश्ते अपना अर्थ खोते जा रहे हैं। कई लोग अपने ही रिश्तेदारों से तभी मिलेंगे या फोन करेंगे जब उन्हें उनसे कोई काम पड़ जाए। पहले रिश्तेदारों से मिलना या रिश्ते निभाना एक खूबी मानी जाती थी। लेकिन आज काम पड़े या किसी से कुछ कहना-पूछना हो तो इसे व्यावहारिकता माना जाता है। याद रखिए रिश्ते तभी अच्छे में स्वस्थ बने रह सकते हैं, जब अपेक्षाएं या इच्छाएं कम हों या नहीं हों। अन्यथा रिश्ते बदलने और उनमें दरार आने में देर नहीं लगती। फिर चाहे वह रिश्ता कितना भी मधुर या घनिष्ठ क्यों न हो। नई पीढ़ी को चक्रव्यू में फंसे रिश्तों की अहमियत को समझना चाहिए।
’अंजली नर्वत, खेड़ी कलां, हरियाणा

काम बनाम सेहत
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आइएलओ द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के तहत लंबे समय तक एक ही तरह का काम करने से स्वास्थ्य खराब होने का खुलासा हुआ है। चूंकि कोविड-19 या कोरोना महामारी ने लोगों को घर से काम करने पर मजबूर किया है, इसलिए इसने लोगों के काम करने के तरीके को बदल दिया है। ऑनलाइन नेटवर्क के अत्यधिक प्रयोग से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।

महामारी ने हमें घर के अंदर समाजीकरण की कमी के साथ सीमित कर दिया है। विषाणु के लगातार संक्रमण के डर ने व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डाला है। कर्मचारियों के काम (ऑफलाइन या ऑनलाइन) के घंटे सीमा से अधिक बढ़ जाने से इनको अपने कार्य और जीवन के बीच संतुलन बनाए रखने में संघर्ष करना पड़ रहा है। अध्ययन से निष्कर्ष निकला है कि सप्ताह में तीस से चालीस घंटे काम करने की तुलना में प्रति सप्ताह पचपन या इससे अधिक घंटे काम करने से इस्केमिक हृदयाघात से मरने का अनुमानित पैंतीस फीसद अधिक जोखिम होता है।

यह एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा है। इसलिए इस समस्या का समाधान करने की आवश्यकता बढ़ रही है। कार्यक्षेत्र पर निर्धारित अवधि से ज्यादा काम यानी ओवरटाइम पर प्रतिबंध लगाने और कार्यसमय की अधिकतम सीमा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, ताकि कर्मचारी अपना काम अच्छे से करें और परिणाम भी बेहतर आएं।
’दीपा अधिकारी, नैनीताल, उत्तराखंड</p>