देश कोरोना महामारी की दो लहरों का सामना कर चुका है। तीसरी लहर के आने के भी कयास लगाए जा रहे हैं। पहली लहर के दौरान प्रवासी मजदूरों का बड़ी संख्या में पलायन देखने को मिला था तो वहीं दूसरी लहर के दौरान अस्पतालों में बिस्तर, ऑक्सीजन की कमी व अन्य सुविधाएं न मिलने की वजह से हजारों लोगों को जान गंवानी पड़ी। देश को कोरोना के इस प्रकोप से उबरने में शायद कई साल लगे, लेकिन आम लोगों की सेवा के लिए चुने गए पार्षद, विधायक, सांसद किस तरह इस मुसीबत के समय में मुंह छिपाए बैठे रहे, यह हम सभी ने देखा। ऐसा लग रहा था मानो ये किसी अज्ञातवास पर गए हों। वहीं तात्कालिक तौर पर सही, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव हो या उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव, दूसरी लहर के दौरान सभी पार्टियों के जनप्रतिनिधि सक्रिय दिखे और अपनी पार्टी को जिताने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे थे।

विधायकों-सांसदों की प्रतिबद्धता सीधे जनता के प्रति है। जनप्रतिनिधि से लोगों की इसलिए भी ज्यादा अपेक्षाएं होती हैं कि प्रशासनिक अधिकारियों के मुकाबले एक जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र की आर्थिक और सामाजिक, हर बारीकी को अधिक बेहतर तरीके से जानता-समझता है। अब पूरे देश में जैसे-जैसे पूर्णबंदी में राहत मिल रही है, वैसे-वैसे लापरवाही बढ़ गई है।
’संदीप कुमार, आइआइएमसी, दिल्ली</p>