स्वदेशी हमारे देश के स्वाधीनता संग्राम का मूलमंत्र था। महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन और स्वदेशी आंदोलन चला कर देश को आजाद कराने में मुख्य भूमिका निभाई थी। इन्होंने 1920 में असहयोग आंदोलन चला कर न केवल विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा इनकी होली जलाने तक सीमित रखा, बल्कि उद्योग कलाकारी, भाषा, शिक्षा, वेश-भूषा आदि सब पर स्वदेशी का रंग चढ़ा दिया था।
भारत के गुलाम होने का आधार था ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत आना। अगर महात्मा गांधी ने भारतीयों को स्वदेशी के प्रति जागरूक न किया होता तो आज शायद भारत आजाद भी नहीं हुआ होता। दादा भाई नौरोजी ने ड्रेन थ्योरी, रमेशचंद्र दत्त ने भारत का आर्थिक इतिहास और सखाराम गणेश देउस्कर ने अपनी किताब ‘देशेर कथा’ में औपनिवेशिक, स्वदेशी संसाधनों का दोहन और देश की आर्थिक व्यवस्था पर चिंता जताई है।
मौजूदा दौर वैश्विक बाजार का है। इसमें हम बिल्कुल यह नहीं कह सकते कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पूरी तरह स्वदेशी आंदोलन चला पाएंगे, क्योंकि हमारे देश के पास अब भी बहुत-से ऐसे कच्चे माल की व्यवस्था नहीं है, जो देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है। सेना के आधुनिक हथियार हों या फिर आधुनिक टेक्नोलॉजी हो, इसके लिए हम अब भी दूसरे देशों पर निर्भर हैं।
यही नहीं हम उन शहरी मशीनों और उद्योगों को भी अनदेखा नहीं कर सकते, जो देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार के लिए संजीवनी हैं। इसलिए देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए देश में स्वदेशी और कुटीर उद्योगों के साथ दुनिया के साथ भी हमें अपने उद्योगों, व्यापार को देश की अर्थव्यवस्था के लिए सेतु बनाना होगा।
’राजेश कुमार चौहान, जालंधर