सन 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर दिन 14.68 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है, जबकि दूध की खपत यहां प्रति व्यक्ति 480 ग्राम है। यानी 135 करोड़ की आबादी में 64 करोड़ लीटर दूध की खपत है। उत्पादन से चार गुणा अधिक। सत्तर फीसद लोग मिलावट वाले दूध का इस्तेमाल करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक अध्ययन रिपोर्ट की मानें तो अगर यही मिलावट का खेल चलता रहा तो 2025 तक भारी तादाद में लोग कैंसर की चपेट में आ जाएंगे।
मिलावट के लिहाज से समूचे भारत में हालात बहुत अलग नहीं हैं, लेकिन उत्तर भारत की हालत ज्यादा बुरी है।
नेशनल सर्वे ऑफ मिल्क अडल्ट्रेशन ने कुछ साल पहले एक सर्वेक्षण किया था। उसमें पता चला कि साफ-सफाई की कमी की वजह से अक्सर पैकेजिंग के वक्त दूध और इससे बने सामानों में डिटर्जेंट जैसी चीजें मिल जाती हैं। जैसे मान लिया जाए कि दूध रखने के लिए इस्तेमाल होने वाले बर्तन को धोए जाते वक्त डिटर्जेंट का इस्तेमाल किया गया। मगर बर्तन ठीक से नहीं धोया गया। फिर जब उसमें दूध रखा गया तो बर्तन में लगा डिटर्जेंट उसी दूध में मिल गया। इस तरह की मिलावट लापरवाही के चलते हुई। लेकिन इसके समांतर जान-बूझकर की गई मिलावट भी होती है। जब दूध को गाढ़ा दिखाने के लिए या लंबे समय तक उसे फटने या खराब होने से बचाने के लिए उसमें मिलावट की जाती है, तब उसमें डिटर्जेंट, यूरिया, स्टार्च, ग्लूकोज और फॉर्मेलिन जैसी जहरीली चीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
ऐसा नहीं कि बस दूध पीकर ही सेहत को नुकसान हो रहा हो। गेहूं और चावल जैसे स्टेपल भी जहरीले हो चुके हैं। दशकों से हो रहे रासायनिक खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से मिट्टी जहरीली हो चुकी है। यह सारा जहर अनाज के रास्ते हमारे शरीर में घुस रहा है। दूध के अलावा भी डराने के लिए और चीजें हैं। मसलन गेहूं और चावल। जिस हिसाब से कीटनाशकों का इस्तेमाल हो रहा है, उसकी वजह से उत्तर भारत के इलाकों में गेहूं जहरीला होता जा रहा है। दूध के बिना तो इंसान फिर भी गुजारा कर ले, लेकिन अनाज के बिना कैसे रहेगा?
’प्रसिद्ध यादव, बाबूचक, पटना, बिहार