नशे का जाल जैसे-जैसे फैलता जा रहा है, वैसे-वैसे इसकी जटिलता भी बढ़ती जा रही है। हमारी युवा पीढ़ी जिस ओर जा रही है इससे स्पष्ट है कि भविष्य अंधेरे में हैं। नशे की लत न सिर्फ शहरों, बल्कि ग्रामीण समाज में भी बेहद बढ़ता जा रहा है। कोई घर से चोरी करके, कोई बाहर चोरी करके तो कोई खेत बेचकर अपनी नशे की तृष्णा को मिटाने का प्रयास कर रहा है! राजस्व की उगाही भविष्य के गले पर लात रखकर की जाएगी तो सब नष्ट हो जाएगा। न बचेगी सभ्यता न संस्कृति।

आज कल ग्रामीण से लेकर शहरी हर जगह बीड़ी, सिगरेट, दारू, चरस सब आम बात हो गई है। न भविष्य की चिंता है, न वर्तमान से मतलब। हाथ में फोन और सुबह से रात तक रील्स देखने का शौक। यह सब देखना मैं गलत नहीं मानती, लेकिन इससे बाहर भी कुछ जिम्मेदारियां हैं। उसे निभाने के बाद यह सब किया जाए तो सब ठीक रहेगा। इस सब की वजह कहीं न कहीं वास्तविक शिक्षा की कमी ही है, जो युवा पीढ़ी अंधेरे भविष्य की ओर जा रही है। ये अपनी अगली पीढ़ी को क्या और कैसा संस्कार देंगे, कैसा भविष्य देंगे ये चिंता का विषय है।

शासन प्रशासन को इस मुद्दे पर वोट बैंक और राजनीतिक दांवपेच से हटकर भविष्योन्मुखी और दूरदर्शी निर्णय लेने होंगे। साथ ही हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए कि अंग्रेज भारत से अफीम खरीद कर चीन में बेचते थे, जिसका उद्देश्य चीनी युवाओं को नशे की लत लगाकर चीन को बर्बाद करना था। नशा सिर्फ विनाश की ओर ले जाता है। इससे बचाव के जो भी उपाय हो सकें, करने बेहद जरूरी हैं, क्योंकि देश का भविष्य हमारे युवाओं के हाथ में ही है।

नीरू पटेल, प्रयागराज, उप्र